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शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 का तीन दिवसीय कैम्प सम्पन्न

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 का तीन दिवसीय कैम्प सम्पन्न

आज दिनांक 06 फरवरी 2010 को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 का तीन दिवसीय कैम्प सम्पन्न हुआ। यह कैम्प जिलाधिकारी, लखनऊ के परिषर में आशा परिवार और जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के बैनर तले सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा 04 फरवरी 2010 से 06 फरवरी 2010 तक आयोजित किया गया था। इस कैम्प का मुख्य उददेश्य यह था कि आम जनता जो सरकारी विभागों से अपने हक को जानने व पाने के लिए परेशान रहती है वह सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 का प्रयोग करके प्राप्त कर सकती है। वह अपने कार्यों की जानकारी, अपने से जुडे उन तमाम आवेदन पत्रों की स्थिति जो उसने विभागों को इस आशय से दिया था कि निश्चित समय में इन पर कार्यवाई होगी और हमारा हक हमें प्राप्त हो जायेगा।
इस तीन दिवसीय कैम्प में करीब 350 लोगों ने जानकारी के साथ आवेदन पत्रों को तैयार करने के विषय में जानकारी प्राप्त की। इस कैम्प में लोगों को जानकारी देने से लेकर आवेदन बनाने का कार्य किया गया। इसमें तमाम विभागों से संबंधित मामले सामने आये। जैसे- विधवा पेंशन के फार्म लोगों ने कई साल पहले भरे थे लेकिन उसका जवाब अभी तक नहीं मिला और तो और, उनका फार्म अब कहाँ है यह भी उन्हें नहीं पता। बडी मुश्किल से ये लोग अपना आवेदन समाज कल्याण विभाग तक पहुंचा पाते हैं। क्योंकि उसमें की जो फारमेल्टीज हैं उन्हें पूरा करने में तमाम खर्च के अलावा बहुत दौड-धूप करनी पडती है तब जाके कहीं फार्म जमा करने की नौबत आती है। यह करना एक आम आदमी के लिए बडी मुश्किल की बात है जिसे खाने के लाले पडे हों। इसी तरह से अपने सरकारी विभाग से रिटायर कर्मचारी कई सालों से विभाग के चक्कर लगाते हैं कि मेरी पेंशन समय से मिल जाये और प्रमोशन के हिसाब से मिले । इसके लिए उन्होंने विभागों के छोटे कर्मचारी से लगाकर बडे अधिकारियों को आवेदन दिया लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ। अब हार थक कर बैठ चुके है। इसी तरह का मामला है कि एक वरिष्ठ लिपिक सिविल कोर्ट लखनऊ में कर्मचारी थे बेचारी बीमारी का शिकार हो गये और अपना इलाज मेडिकल कालेज से लगाकर बडे-बडे अस्पतालों में कराया। ठीक तो हो गये । जितनी बीमारी में तकलीफ नहीं थी उतनी भागदौड करके अब परेशान हैं क्योंकि उन्हें मेडिकल खर्च नहीं मिल पा रहा है। जिसको प्रार्थना पत्र देते हैं । एक महीने बाद जाते हैं तो पता चलता है कि उनका प्रार्थना पत्र ही गायब हो गया है। कोई अपनी भर्ती प्रक्रिया को लेकर रो रहा है। एक सज्जन ने 1997 में उत्तर रेलवे में सफाई कर्मी के पद के लिए आवेदन किया था। उनका साक्षात्कार भी हुआ था और मेरिट लिस्ट में नाम भी आ गया। लेकिन बेचारे अभी भटक रहें है। क्योंकि उनसे कम नम्बर पाने वाले और साक्षात्कार न देने वालों को नौकरी मिल गयी और बराबर नौकरी कर अपनी तनख्वाह उठा रहे हैं। उन्हें क्यों नौकरी नहीं मिली । यह उनकी समझ से परे है। वह जानना चाहते हैं कि आखिर यह कैसे हुआ। मेरा नाम मेरिट लिस्ट में आने के बाद भी मैं खाली बैठा हॅू । मुझे नियुक्ति क्यों नहीं मिली। मुझसे कम नम्बर पाने वाले कैेसे नियुक्ति पा गये।
इन सब परेशानियो को जानने और अपने हक की लडाई लडने में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 ही कारगर साबित होता है। यह जानने के लिए लोगों की भीड उमड पडी। जमकर जानकारी ली। इससे उनका इतना विश्वास हो गया कि चलो अब अधिकारी कुछ नहीं करेगें तो सूचना देने के लिए तो बाध्य होगें ही। कम से कम यह तो पता चल जायेगा कि हमारा फार्म कहाॅ है और उस पर क्या कार्यवाई की गयी है। उसकी क्या स्थिति है। मेरा काम किन कारणों से रूका है। यह काम कब तक हो जायेगा। अब कोई अधिकारी ज्यादा दिन तक परेशान नहीं कर पायेगा। वह सूचना देने में बहाना नहीं कर पायेगा।
लोगों ने यह सब जानकारी पूर्णतया सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धाराओं जैसे- 6(1),6(3) समेत प्राप्त की। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 में जो धारा 6(1) है वह सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदन देने के लिए होती है जिसके तहत आवेदन किया जाता है। धारा 6(3) के तहत अधिकारी किसी भी विभाग से सूचना लाकर आवेदक को देने के लिए बाध्य होता है। वह यह बहाना करके आवेदन अस्वीकार नहीं कर सकता है कि यह सूचना या इसका कुछ भाग मेरे विभाग से संबंधित नहीं है। इन तमाम जानकारियों के अभाव में कभी-कभी आवेदक का आवेदन विभागीय अधिकारी यह कह कर वापस कर देते थे कि अरे! यह सूचना तो हमारे विभाग से संबंधित नहीं थी आप जिस विभाग से संबंधित है उसमें आवेदन करे।
उपरोक्त जानकारियों को बताते हुए और इससे जुडे कार्यकर्ताओं के सम्पर्क सूत्र देते हुए, लोगों को जानकारी उपलब्ध करायी गयी। जो लोग आवेदन नहीं बना पाते थे उनको आवेदन बनाना बताया गया। इसको हिन्दुस्तान दैनिक अखबार ने 05 फरवरी 2010 के अंक में प्रकाशित भी किया। इसमें मुख्य रूप से और सामाजिक क्षेत्रों से जुडे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया और लोगों को जानकारी से लेकर आवेदन बनाने में मदद की। चुन्नीलाल ( जिला समन्वयक, आशा परिवार), आशीष कुमार, उर्वशी जी, नसीर जी कार्यकर्ता, आशा परिवार व मानव मूल्य रक्षा समिति की अध्यक्षा श्रीमती लक्ष्मी गौतम जी व सामाजिक कार्यकर्ता तथा मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित व एन0ए0पी0एम0 के राष्ट्रीय समन्वयक डा0 संदीप पाण्डेय जी ने मुख्य रूप से भाग लिया। विशेष जानकारी देने के लिए और सहयोग के लिए सभी का धन्यवाद।
भवदीय,
चुन्नीलाल
(जिला समन्वयक, आशा परिवार)
मे0 नं0 09839422521

बुधवार, 25 नवंबर 2009

आर० टी० आई० से बच्चों ने बदली गाँव की तस्वीर

आर० टी० आई० से बच्चों ने बदली गाँव की तस्वीर
उत्तराखंड में पबम के बच्चों ने आर० टी० आई० का इस्तेमाल करके अपने गाँवो की जो तस्वीदलने की मुहीम छेड़ी है वो वाकई कबीले तारीफ और प्रेरणादाई है. बच्चों ने इस कानून का इस्तेमाल करके पूरे देश के लिए एक सन्देश दिया है कि बच्चे भी इस देश कि जर्जर हो चुकी ब्यवस्था को बदलनें में एक अहम् भूमिका निभा सकते है. मुझे पबम के इस दो दिवसीय कार्यशाला में जाकर सीखने को मिला कि अगर बच्चे इस कानून का इस्तेमाल करने लगे तो इस देश को सही अर्थो में आजाद होने के लिए ज्यादा वक्त नहीं लगेगा. आर० टी आई० इस्तेमाल करके बच्चों के अन्दर एक आत्मविश्वास और गाँव को बदलने कि ललक उनके चेहरे पर साफ दिखाई पड़ रही थी. सपना, प्रीति, कविता, देवब्रत, मनीष, और अन्य तमाम बच्चे जिन्होंने अपने गाँव अपनी स्कूल कि समस्याओं का हल आर० टी आई० का इस्तेमाल करके किया है. मुझे लगता है कि इस देश में आर० टी आई० कानून लागू होने के बाद इन ४ सालों में ये पहली बार हुआ है कि सामूहिक रूप से बच्चों ने आर० टी आई० कानून का इस्तेमाल किया है. ये पूरे देश के लिए एक प्रेरणादाई बात है कि जिस कानून का इस्तेमाल करने में बड़े पीछे रहते है उस कानून का इस्तेमाल करके बच्चो ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया है. देश में अन्य जिन जगहों पर आर० टी आई० का इस्तेमाल लोगों कर रहे है वो ज्यादतर अपने व्यक्तिगत कामों के लिए कर रहे है मगर इन बच्चो ने सामाजिक समस्याओं पर आर० टी आई० का इस्तेमाल करके समाज को कुछ देने के साथ साथ उनको झकझोरा भी है. इन बच्चों में अपने गाँव का प्रतिनिधित्व करने कि क्षमता साफ दिखाई पड़ने लगी है. इस देश को आजाद हुए करीब ६३ वर्ष हो चुके है इस दौरान जो भी कानून सरकार द्वारा बनाये गए वे प्रशासन द्वारा लोगों पर शासन करने के लिए थे. मगर सन २००५ में जन दबाव के कारण दो कानून ऐसे पास करने पड़े जो आम जनता के लिए थे उसमे से एक था सूचना का अधिकार अधिनियम २००५. इस कानून ने इस देश कि आम जनता को इस देश का सही अर्थो में मालिक होने का एह्साह कराया. इस कानून को लागू होने के बाद लोगों ने इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ एक हथियार कि तरह इस्तेमाल करना शुरू किया. वर्षो से जिन कामो को कराने के लिए जनता को घूस देना पड़ता था आज लोगो ने उनसे काम न होने पर सवाल पूछना शुरू कर दिया. सरकार को ये कानून अपने सर के ऊपर लटकती तलवार साबित होने लगी. सरकार और प्रशासन के लोगों ने मिलकर इस कानून में बदलाव कि कोशिश शुरू कर दी मगर जन प्रतिरोध के चलते उनको आर० टी आई० में संसोधन का प्रस्ताव वापस लेना पड़ा. कोई भी हथियार कि उपयोगिता तभी है जब उसका लोग इस्तेमाल करे. आर० टी आई० जैसे कानूनी हथियार का जितना इस्तेमाल किया जायेगा उतनी ही इसकी धार और पैनी होगी. बच्चों ने इस हथियार का इस्तेमाल करके एक नया रास्ता दिखाया है इस कानून को इस्तेमाल करने का. आज भविष्य वर्त्तमान कि व्यवस्था परिवर्तन में एक धुरी का काम करने जा रहा है ये एक सुखद घटना है. हलाकि अभी इस परिवर्तन के रास्ते पर चुनौतिया बहुँत है, लेकिन अगर इस समाज के बड़े लोग जो बच्चो को कोई अहमियत नहीं देते है वे इस समाजिक बदलाव में इन बच्चों के साथ खडे हो जाय तो इस देश कि ये दूसरी आजादी का संघर्ष सही अर्थों में सफल हो जायेगा.
महेश

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सोमवार, 14 सितंबर 2009

समोसा खिलाकर हड़पी नरेगा (NREGA) की मजदूरी

समोसा खिलाकर हड़पी नरेगा (NREGA) की मजदूरी
  • नानामउ में नरेगा मजदूरों के नाम पर लाखों रूपये लूटे प्रधान ने
    • नरेगा मजदूरों के एकाउंट से जबरदस्ती पैसा निकलवा हड़पा प्रधान ने
  • मानक से ज्यादा जबरदस्ती लिया जा रहा है काम
नानामउ ग्राम पंचायत के ग्राम प्रधान ने नरेगा में फर्जी मस्टर रोल भरकर करीब 100 मजदूरों के नाम पर पैसा एकाउन्ट में मंगाकर मजदूरों को ये बताते हुए कि ये पैसा गलती से आ गया है सबका पैसा नकद निकलवाकर उन्हें समोसा चाय खिलाकर हड़प लिया। जिन लोगों ने पैसा निकालने का विरोध किया उन्हे पुलिस में देने की धमकी देकर और जबरदस्ती उन्हे बैक ले जाकर उनसे पैसा निकलवाकर प्रधान राधवेन्द्र सिंह उर्फ भंवर सिंह ने हड़प लिया। गंगा नदी के किनारे बसा कानपुर नगर के बिल्हौर तहसील का ग्राम पंचायत नानामउ। पिछले साल जब नरेगा कानून कानपुर नगर में लागू हुआ तब इस गांव के भूमिहीन मजदूरों को भी आस बंधी की, अब उन्हें भूखे पेट नहीं सोना पड़ेगा। वे नरेगा में काम करके अपने परिवार को रोटी दे सकेंगे, मगर आज वो आस टूट रही है। जब जाब कार्ड बनने के बाद नरेगा का बैंक एकाउन्ट खुला तो गांव के जागेलाल बताते है, कि मैं जिंदगी में पहली बार बैंक गया था। आगे बताते है, कि नरेगा में 11 दिन काम किया बैंक में जब पेैसा आया जाकर 1000 रू0 निकाला सोचा अब दिन बहुरने वाले है, बैंक से मजदूरी मिल रही है। अब हम गरीबों की मजदूरी कोई लूट नहीे पायेगा। फिर काम बन्द हो गया करीब 1 महीने बाद एक दिन प्रधान राधवेन्द्र सिंह अपनी मार्सल गाड़ी लेकर आये और कहा कि, तुम्हारे एकाउन्ट में गलती से हमारे खाते का पैसा आ गया हैं, चलो गाड़ी में बैठो और बैंक से पैसा निकालकर दे दो। मैने सोचा कि जो प्रधान जी गांव में किसी के बिमार पड़ने पर भी अपनी गाड़ी नहीं देते है आज हम लोगों को अपनी गाड़ी में क्यों ले जा रहे हैं। गांव के और भी मजदूर गाड़ी में बैठे थे। प्रधान हम सबको लेकर बड़ौदा ग्रामीण बैक बिल्हौर गये और फार्म भरकर हम लोगों से अंगूठा लगाकर जमा कर दिये हम लोगों ने तीन-तीन हजार रूप्ये निकालकर प्रधान राधवेन्द्र सिंह को दे दिये, उसके बाद प्रधान ने हम लोगों को चाय समोसा खिलाया और 50 रूप्ये देकर कहा कि बस से गांव चले जाओ। इसी तरह से गांव के करीब 100 मजदूरों का पैसा निकलवाकर प्रधान ने सबसे ले लिया। हम लोगो ने इस बीच कोई काम नहीे किया था इसलिए सोचा कि गलती से पैसा चढ़ गया होगा। गांव के कुछ मजदूरों ने जब अपने खाते से पैसा निकालने से मना किया तब प्रधान ने पुलिस बुलाने और पिटवाने की धमकी दी तो मजदूर डरकर पैसा निकालकर दे दिये कुछ मजदूर जब रिस्तेदार के यहां चले गये तो उसे गाड़ी से पकड़कर जबरदस्ती उससे पैसा प्रधान ने निकलवा लिया। संजय द्विवेदी ने बताया कि उनके घर में दो भाइयों के जाब कार्ड बने है और हम दोनों भाइयों ने करीब 24 हजार रूप्ये निकालकर प्रधान को दिये हैं। संजय पुत्र दयाशंकर का जाब कार्ड सं0 31340376042825093 और बैंक एकाउन्ट न0 30650100003312 से 9 मार्च को 8000 रूप्ये 18 मार्च को 2400 और 26 मार्च को 2000 रूप्ये निकालकर प्रधान राधवेन्द्र सिंह को दे दिये। इसी तरह राजेश पुत्र राम स्वरूप बैंक एकाउन्ट न0 30650100003402 से 2900 रूप्ये, राजू पुत्र राम स्वरूप से 1900 रूप्ये, राजेश पुत्र मुल्ला जाब कार्ड सं0 31340376042825098 से 2900 रूप्ये, अरविन्द पुत्र सोबैदर जाब कार्ड सं0 31340376042825001 और बैंक एकाउन्ट न0 30650100003370 से 2900 रूप्य,े अरूण पुत्र रामस्वरूप जाब कार्ड सं0 31340376042825153 और बैंक एकाउन्ट न0 30650100003360 से 2900 रूप्ये निकालकर ग्राम प्रधान को दे दिए। मजदूरों के जाब कार्ड में कुछ भी नहीं भरा गया है जाब कार्ड पूरी तरह से खाली है। मजदूरों से बातचीत के दौरान वहां पर ग्राम पंचायत के नरेगा के काम के लिए नियुक्त पंचायत मित्र अंकित कुमार शुक्ल आ गये, उन्होने बताया कि मस्टर रोल काम के दौरान नहीं भरा जाता है वो प्रधान और सचिव बाद मे भरते हैं। मजदूरों ने ये भी बताया कि उनसे 100 से 110 घन फिट मिट्टी खोदने का कार्य लिया जा रहा है। पंचायत सचिव ने बताया कि 100 धनफुट मिट्टी खोदने का कार्य हम लोग लेते है, ये बताने पर कि मानक ये नहीे है तो पंचायत सचिव ने कहा कि प्रधान जो कहते है वही यहंा मानक है। जाते-जाते उन्होने मजदूरों को धमकी दी कि जो जो लोग यहां पर बैठक में हो उन सबको काम से निकाल देंगे और कोई काम नहीं करायेंगे। जहां आज हम अपने को विकसित देश की कतार में खडे़ देखना चाहते है वही इस देश की 60 प्रतिशत आबादी आज भी इसी तरह शोषण व दमन के बीच रोटी की जद्दोजहद में लगी हुई है, और हमारे रक्तपिपासु जनप्रतिनिधि तथा प्रशासन के नुमाइंदे नरेगा जैसी योजनाओं में भी मजदूरों का रक्त चूस रहे है।

Report By, Mahesh & Shankar Singh

“Asha Pariwar”, Kanpur

“Apna Ghar”, B-135/8, Pradhane Gate, Nankari ,IIT, Kanpur-16 India


शनिवार, 5 सितंबर 2009

जब एक गांव ने एक सामाजिक संगठन को खड़ा किया कठघरे में.....Sandeep Pandey


जब एक गांव ने एक सामाजिक संगठन को खड़ा किया कठघरे में
Sandeep Pandey


हरदोई जिले की सण्डीला तहसील की ग्राम पंचायत सिकरोरिहा का गांव है नटपुरवा। यहां नट बिरादरी के लोगरहते हैं जिनमें से कुछ परिवार वेष्यावृत्ति में लिप्त हैं। बताते हैं यह परम्परा है यहां करीब तीन सौ सालों से है। कुछपरिवारों में लड़कियों या बहनों को इस धंधे में धकेल दिया जाता है। परिवार के पुरुषों के लिए यह अत्यंतसुविधाजनक है क्योंकि इससे आसान कमाई हो जाती है।

इन्हीं परिवारों में से एक के एक नवजवान जो एक सामाजिक संस्था के क्षेत्रीय आश्रम से जुड़े थे ने यह फैसलाकिया कि वह अपने गांव की उपर्युक्त समस्या से लड़ने के लिए अपने गांव में ही काम करेगा। यह माना गया कियदि गांव की लड़कियों को वेष्यावृत्ति के व्यवसाय में जाने से रोकना है तो एक रास्ता हो सकता है शिक्षा का।नटपुरवा में कोई प्राथमिक विद्यालय नहीं था। अगल-बगल के गांवों में नटपुरवा के बच्चों के लिए जाने में उन्हेंअपमान झेलना पड़ता था क्योंकि नट बिरादरी के लोगों को उनके व्यवसाय के कारण हेय दृष्टि से देखा जाता था।

अतः नीलकमल ने 2001 में अपने गांव में एक विद्यालय की नींव डाली। गांव के ही लोगों को शिक्षण कार्य मेंलगाया। धीरे-धीरे विद्यालय में बच्चे बढ़ने लगे। एक पुस्तकालय भी शुरू किया गया।

गांव के लोग ग्राम प्रधान के द्वारा कराए गए विकास कार्यों से असंतुष्ट थे। एक अन्य नवजवान श्रीनिवास नेपंचायती राज अधिनियम का इस्तेमाल कर ग्राम पंचायत के आय-व्यय का ब्यौरा मांगा। यहां के निर्वाचित प्रधानथे रुदान लेकिन असल में ग्राम प्रधानी चला रहे थे भूतपूर्व प्रधान हरिकरण नाथ द्विवेदी। रुदान हरिकरण नाथद्विवेदी के खेत में काम करते थे। असल में आजादी के बाद से हमेशा ग्राम प्रधान द्विवेदी के परिवार का ही कोईव्यक्ति रहा। किन्तु यहां आरक्षण लागू हो जाने की वजह से उन्हें अपने दलित नौकर को ग्राम प्रधान बनवाना पड़ा।

गांव का आय-व्यय का ब्यौरा निकलने के बाद गांव की जनता जांच हुई। यानी जनता ने आय-व्यय के ब्यौरे केआधार पर कार्यों का भौतिक सत्यापन किया। ,६९,१०२रु0 रुपयों का घपला निकला। रपट जिलाधिकारी को सौंपीगई। जिलाधिकारी ने अपने स्तर से जांच कराई। उन्होंने यह कहते हुए कि इस ग्राम का प्रधान रबर स्टैंम्प प्रधान हैउसे निलंबित कर दिया। किन्तु जिले के ही तत्कालीन कृषि मंत्री अशोक वाजपेयी की सिफारिश पर प्रधान बहालहो गए। इस घटना की उपलब्धि यह रही कि द्विवेदी परिवार की दबंगई पर कुछ अंकुष लगा। अपने मौलिकअधिकार को लेकर लोग मुखरित हुए।

सामाजिक संगठन आशा परिवार से एक भूतपूर्व वेष्या चंद्रलेखा भी जुड़ीं। वे भी गांव में बदलाव चाहती थीं। एकबार उनके बारे में एक राष्ट्रीय स्तर की पत्रिका में छपा। जिलाधिकारी ने उन्हें मिलने के लिए बुलाया। जबजिलाधिकारी ने उनसे पूछा कि वे अपने गांव के लिए क्या चाहती हैं तो उन्होंने एक प्राथमिक विद्यालय की मांगकी। इस तरह से गांव में एक प्राथमिक विद्यालय बन गया। यह एक बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी।

किन्तु धीरे-धीरे सामाजिक संगठन का काम शिथिल पड़ता गया। कार्यकर्ताओं के व्यवहार में भी कुछ गड़बड़ियोंकी शिकायत आने लगी। गांव वालों का भरोसा संगठन से उठ गया तो उन्होंने गांव में विकास होने के मुद्दे परआम चुनाव का बहिष्कार किया। फिर चुनाव के बाद जिला मुख्यालय पर धरना देकर गांव में एक पक्की नालीतथा राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के तहत एक तालाब खुदाई का कार्य कराया।

27 अगस्त, 2009, को गांव वालों ने एक सार्वजनिक बैठक कर सामाजिक संगठन आशा परिवार के कार्यकर्ताओंको कठघरे में खड़ा किया। सवाल किए गए कि इस संगठन के लोगों ने गांव में ठीक से विकास कार्य कराने मेंदिलचस्पी क्यों नहीं ली? आखिर ऐसी नौबत क्यों आई कि गांव वालों का संगठन से विश्वास उठ गया तथा उन्हेंअपना काम कराने के लिए खुद पहल करनी पड़ी?

आशा परिवार के कार्यकर्ताओं ने यह माना कि उनके कामों में कमी रही है। हलांकि उनके खिलाफ लगाए गएभ्रष्टाचार के कोई आरोप साबित नहीं हो पाए। संगठन ने किसी को भी अपना हिसाब-किताब देखने की खुली छूटदी। लेकिन अपने गलत व्यवहार के लिए उन्होंने गांव वालों से माफी मांगी।

गांव वालों ने निर्णय लिया कि चूंकि लोगों का विश्वास सामाजिक संगठन में खत्म हो गया है अतः वह अब इस गांवमें काम करे। संगठन की तरफ से दो कार्यकत्रियाँ जो प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाने जाती थीं उनको भी जाने सेमना किया गया। चूंकि एक खुली बैठक में यह गांव वालों का सामूहिक निर्णय था इसलिए सामाजिक संगठन नेइस फैसले का सम्मान करते हुए नटपुरवा गांव में अपना काम स्थगित करने का निर्णय लिया।

हलांकि बैठक के दौरान काफी तनाव रहा और तीखी बहस भी हुई, ऐसी आशंका होने के बावजूद कि लड़ाई-झगड़े केसाथ बैठक समाप्त होगी, दोनों पक्षों ने सयम बरता। एक स्वस्थ्य लोकतांत्रिक तरीके से बातचीत सम्पन्न हुई। यहभी महसूस किया गया कि जैसे एक सामाजिक संगठन को कठघरे में खड़ा किया गया उसी तरह शासन-प्रशासनकी व्यवस्था में जो लोग जनता के विकास कार्यों के लिए जिम्मेदार हैं उन्हें भी जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।

असल में यही लोगतंत्र का मौलिक स्वरूप होना चाहिए। जहां बहस के जरिए चीजें तय हों। जहां जो जिम्मेदार लोगहैं, जैसे जन-प्रतिनिधि, प्रशासनिक अधिकारी, सार्वजनिक उपक्रम, जनता के संसाधनों का इस्तेमाल करने वालीनिजी कम्पनियां और विभिन्न सामाजिक, धार्मिक संगठन राजनीतिक दल जो जनता से चंदा लेकर अपनाकाम करते हैं, उन्हें जनता के प्रति अपनी जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए। सूचना के अधिकार के कानून आनेके बाद भी अभी हमारे समाज में जवाबदेही पारदर्शिता की संस्कृति जड़ नहीं पकड़ पा रही है। उसके बिनालोगतंत्र सही मायनों में कभी साकार नहीं हो पाएगा।


लेखक :डॉ.संदीप पाण्डेय


(लेखक, मग्सय्सय पुरुस्कार से सम्मानित वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एन।ए।पी.एम्) के राष्ट्रीय समन्वयक हैं, लोक राजनीति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्षीय मंडल के सदस्य हैं। सम्पर्क:ईमेल:(asha@ashram@yahoo-com, website: www-citizen&news-org)

बुधवार, 2 सितंबर 2009

प्रधान ने किया ५५ लाख का घोटाला, इसे उजागर करने वाले को पहुंचा दिया मौत के करीब

कुशी नगर जिले में प्रधान ने किया ५५ लाख का घोटाला, इसे उजागर करने वाले को पहुंचा दिया मौत के करीब !
चुन्नीलाल

३० अगस्त, २००९ को बाजार से लौटते समय जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से जुड़े सामाजिक कार्यकर्त्ता श्री कन्हैया पाण्डेय पर ग्राम पंचायत गौरखोर ब्लाक फाजिलनगर, के ग्राम प्रधान गौतम लाल ने अपने साथियों के साथ मिलकर जानलेवा हमला किया | लाठी डंडों से इतना मारा कि नाक की हड्डी टूट गई और सिर फूट गया तथा पूरे शरीर पर लाठियाँ चलाई, जो अब जिला हॉस्पिटल कुशीनगर में मौत से लड़ रहे हैं | हालत गम्भीर है, बचने की उम्मीद कम |

इस घटना को अंजाम तक पहुँचाने की कोशिश में ग्राम प्रधान गौतम लाल ने ग्राम विकास का ५५ लाख रूपये का घोटाला किया | यह घोटाला तब उजागर हुआ जब जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता ने सूचना के अधिकार अधिनियम २००५ के तहत ग्राम पंचायत गौरखोर के विकास पर खर्च किये गए सरकारी धन का हिसाब-किताब माँगा | गांव के विकास के नाम पर खर्च किया गया सरकारी धन केवल कागजों तक ही पहुंचा था और कागजों पर ही गांव का विकास हो गया | गांव के विकास का पैसा ग्राम प्रधान ने केवल अपने विकास में खर्च किया था |

५५ लाख के घोटाले की जाँच ग्रामीण उच्च अधिकारियों से कराने की मांग को लेकर "एन.ए.पी.एम." के राज्य समन्वयक केशव चंद बैरागी के नेतृत्व में ग्रामीणों ने ५ दिवशीय धरना ग्राम पंचायत गौरखोर की ब्लाक फाजिलनगर पर शुरू कर दिया | यह धरना २१ अगस्त २००९ से २५ अगस्त २००९ तक ब्लाक पर चलता रहा | ५ दिनों में किसी सरकारी अधिकारी,कर्मचारी ने इन लोगों की सुध नहीं ली | जब ५ दिन के बाद भी किसी अधिकारी के कान पर जूं नहीं रेंगी तब यह धरना जिलाधिकारी कुशीनगर के आवास पर पहुँच कर भूख हड़ताल में बदल गया |

२५ अगस्त, २००९ से केशव चंद बैरागी के साथ कन्हैया पाण्डेय, पौहारी सिंह, कृष्ण, नसरुल्लाह और तमाम ग्रामीणवासियों ने जिलाधिकारी कार्यालय के सामने भूख हड़ताल शुरू कर दिया | चार दिन बाद यानि 29 अगस्त,२००९ को मौके पर पहुँचे जिलाधिकारी कुशीनगर, एस.डी.एम. व अन्य अधिकारियों ने भूख हड़ताल पर बैठे लोगों को जाँच का आश्वासन देकर भूख हड़ताल ख़त्म करवाई थी | सभी ग्रामीण इस बात से ख़ुशी थे कि हमने अपने हक़ के लिए लड़ाई लड़ी है और अब इस घोटाले की जाँच होगी |

यह क्या था ? जाँच अभी शुरू नहीं हुई कि कातिलाना हमला शुरू हो गया | ३० अगस्त,२००९ की शाम ब्लाक फाजिल नगर की बाजार से लौटते समय ग्राम प्रधान और उसके साथियों ने जाँच घोटाले की जाँच कराने की आवाज उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता कन्हैया पाण्डेय पर जान लेवा हमला कर दिया | कन्हैया पाण्डेय इस समय जिला हॉस्पिटल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं | फिर कानून ग्राम प्रधान को दोषी नहीं ठहरा रहा है उल्टे कन्हैया पाण्डेय पर ही एस.सी.एस.टी. एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करने की सोंच रहा है |
अब देखना यह है कि समाज के इन सेवकों को न्याय कौन दिलाता है ?
कौन वसूल कर्ता है ग्राम विकास के घोटाले का धन ? ग्राम प्रधान से !


लेखक - आशा परिवार एवं जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से जुड़कर शहरी झोपड़-पट्टियों में रहने वाले गरीब, बेसहारा लोगों के बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं तथा सिटिज़न न्यूज़ सर्विस के घुमंतू लेखक हैं|

रविवार, 30 अगस्त 2009

नरेगा (NREGA) मजदूरों की जीत

नरेगा (NREGA) मजदूरों की जीत, रूका काम शुरू

बगदौधी बागर के ग्राम प्रधान राजू दिवाकर ने अन्ततः नरेगा (NREGA) मजदूरों के काम रोको संघर्ष के आगे झुकते हुए उनकी तीनों मांगे स्वीकार कर ली, आखिरकार पिछले दो दिनों से नरेगा(NREGA) के तहत रामनगर तलाब की जो खुदाई बन्द हो गई थी आज फिर से शुरू हो गई। कानपुर नगर के चैबेपुर ब्लाक के बगदौधी बंागर ग्राम पंचायत में नरेगा(NREGA) के तहत तलाब का खुदाई में करीब 35 मजदूर लगे थे। ग्राम प्रधान उनसे मानक से ज्यादा 80 से 90 घन फुट खुदाई करके 200 फीट दूर फेंकनंे का दबाव देने लगा। 2 दिनों तक दबाव में मजदूरों ने 80 घनफुट मिट्टी खोदकर करीब 200 फीट दूर तक फेंका। तीसरे दिन मजदूरों ने मानक से ज्यादा काम करने से मना कर दिया। प्रधान ने उन्हे काम से निकाल देने कि धमकी दी, मजदूरों ने आशा परिवार के साथियों से सम्पर्क किया। अगले दिन आशा परिवार के साथी जब तालाब पर सभी मजदूरों के साथ बैठक कर रहे थे, तभी ग्राम प्रधान अपने साथियों के साथ पहुचां। प्रधान को भी बैठक में शामिल कर नरेगा(NREGA) कानून और मजदूरों के हक और काम के मानकों के बारे में आशा परिवार के साथियों ने विस्तार से चर्चा किया। मजदूरों ने अपनी तीन समस्यायें बैठक के दौरान सामने रखी साथ ही कहा ये मागे प्रधान पूरी करे नहीं तो हम लोग इस लड़ाई को आगे तक ले जायेंगे।
  • नरेगा (NREGA) के मानक के अनुसार 70 घनफुट खुदाई और 15 मीटर तक मिट्टी फेंकने का काम लिया जाय, इससे ज्यादा नहीं.
  • मजदूरों का जो मेठ है वह दूसरे ग्राम पंचायत का है उसे हटाकर इसी ग्राम पंचायत का जो काबिल आदमी है उसे मेठ रखा जाय। राम कुमार जो 12 वीं पास है और इसी ग्राम पंचायत के है, इस समय नरेगा (NREGA) में काम कर रहे है उन्हे मेठ बनाया जाय।
  • पानी पीने के लिए अलग से एक मजदूर लगाया जाय, जो हम लोगों को काम के दौरन पानी पिलाये।
मजदूरों और प्रधान के साथ करीब 2 घंटे तक चले गरमा गरम बहस के बाद जब मजदूरों ने अन्ततः अपनी मांगे नहीं छोड़ी तो प्रधान राजू दिवाकर ने मजदूरों की तीनों मागें मान ने ली। मिट्टी फेकने की दूरी चूकि 80 फीट थी इसलिए खुदाई 60 घनफुट तय हुई। प्रधान ने बाहरी मेठ को हटाकर उसी गांव के राम कुमार को जो इसी काम में मजदूरी का काम कर रहे थे उन्हे मेठ बनाया। मजदूरों में से एक मजदूर को अलग से सिर्फ पानी पिलाने की व्यवस्था पर लगाया गया। मजदूरों के तीनों मांगों को ग्राम प्रधान के मानने के बाद आज से राम नगर तालाब पर फिर से खुदाई का काम शुरू हो गया। मजदूरों के संगठित होने के बाद एक बार फिर जहां मजदूरों की टूटी आस जुड़ गयी वहीं दूसरी और उनका नरेगा(NREGA)पर विश्वास मजबूत होता दिखाई पड़ा।

Report By, Mahesh & Shankar Singh

“Asha Pariwar”, Kanpur

“Apna Ghar”, B-135/8, Pradhane Gate, Nankari ,IIT, Kanpur-16 India

Ph: +91-512-2770589,Cell No. +91-9838546900
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गुरुवार, 27 अगस्त 2009

कानपूर में नरेगा में हुए घपले में जाँच शुरू

नरेगा में हुई अनियमितताओं की जांच शुरू
बराण्डा ग्राम पंचायत में नरेगा NREGA के कामों में हो रही अनियमितताओं के खिलाफ वहां के मजदूरों के संघर्ष को कानपुर जिलाधिकारी ने गम्भीरता से लेते हुए, कानपुर नगर के बिल्हौर ब्लाक के बराण्डा ग्राम पंचायत के उपर जांच का आदेश करते हुए, कानपुर नगर के जिला मत्सय अधिकारी राजेश कुमार सिंह को जांच सौंप कर 3 दिनों के भीतर रिर्पोट प्रस्तुत करने को कहा।
आज दिनांक 27 अगस्त 2009 को जांच अधिकारी राजेश कुमार सिंह ने करीब 12 बजे दिन में बराण्डा ग्राम पंचायत में पहुंच कर जांच शुरू कर दी। जांच के दौरान सैकड़ो की संख्या में ग्राम वासी और नरेगा (NREGA) मजदूरों के साथ आशा परिवार बिल्हौर के के0 के0 कटियार, मेवाराम, रमाकान्त, महेश चन्द्र धीरज और शंकर सिंह वहां मौजूद थे।
जांच के दौरान जांच अधिकारी ने ग्राम पंचायत सचिव महेन्द्र कुमार गौतम से कार्यवाही रजिस्टर मांगा। सचिव ने जब रजिस्टर उपलब्ध कराई तो उस रजिस्टर में कोई कार्यवाही दर्ज नहीं थी, और कार्यवाही रजिस्टर पूरी खाली थी। उसके बाद जांच अधिकारी ने कार्य प्रस्ताव रजिस्टर देखा वो भी पूरी तरह खाली थी और कार्य प्रस्ताव रजिस्टर में कोई भी कार्य का प्रस्ताव दर्ज नहीं था जबकि इस ग्राम पंचायत में अब तक नरेगा (NREGA) के तहत 5 कार्य पूरे किये जा चुके है। जांच अधिकारी द्वार जांच में ये भी पाया गया कि अभी तक किसी भी काम की एम0 बी0 (Measurement Book) नहीं बनी है। खुली बैठक का रजिस्टर देखने पर पता चला कि ये रजिस्टर भी पूरी खाली है। मस्टर रोल समरी रजिस्टर जांच अधिकारी द्वारा मांगने पर सचिव ने बताया कि अभी तक बना नहीं है।
गांव में 384 बी0पी0एल0 (BPL) कार्ड धारक मगर जाब कार्ड सिर्फ 189
जांच अधिकारी ने ग्राम पंचायत सचिव से जब ये सवाल पूछा कि अब तक कुल कितने जाब कार्ड बने है। सचिव ने बताया 189 जाब कार्ड बने है। जांच अधिकारी ने पूछा कि इस गांव में कुल कितने बी0पी0एल0 (BPL) कार्ड धारक र्है। सचिव ने बताया 384 बी0पी0एल0 (BPL) कार्ड धारक र्है। जांच अधिकारी ने इस बात पर फटकार लगाते हुए बहुत नाराजगी दिखाई कि जिस गांव में 384 बी0पी0एल0 (BPL) कार्ड धारक र्है वहां अब तक सिर्फ 189 जाब कार्ड बने है। मस्टर रोल मांगने पर सचिव ने बताया कि अभी मस्टर रोल नहीं है डाटा फिडिंग के लिए गया हुआ है किसी भी काम का मस्टर रोल दिखाने में सचिव असमर्थ रहे। एकाउन्ट खोलने के बाबत जांच अधिकारी द्वारा सवाल पूछने पर बताया कि अभी तक सिर्फ 100 खातों के ही एकाउन्ट खुल पाये है। नरेगा (NREGA) का परिवार रजिस्टर के बारे में जब जांच अधिकारी ने जानना चाहा तो सचिव ने बताया कि अभी तक नरेगा परिवार रजिस्टर नहीं बना हैं। मजदूरों के साथ जांच अधिकारी ने बैठक कर उनकी समस्याओं के बारे में जानना चाहा। मजदूरों ने बताया कि जाब कार्ड बने एक साल हो गया मगर अभी तक उनके हाथों में जाब कार्ड नहीं मिला है सभी जाब कार्ड प्रधान के पास रहता है। सचिव ने करीब 70 जाब कार्ड जो अपने पास रखे थे दिये । जांच अधिकारी ने सचिव को जमकर फटकार लगाई अब तक जाब कार्ड मजदूरों को न सौंपे जाने के बाबत, सचिव ने कहा कि अभी तक हस्ताक्षर नहीं हो पाये है। मैं कल तक करा के सबको सौप दूंगा। 22 लोगों ने लिखित शिकायत कि नवम्बर 2008 से दिस्मबर 2008 तक नरेगा (NREGA) में करीब 97 मजदूरों ने 35 दिन मकनपुर रोड से जूनियर प्राइमरी सम्पर्क मार्ग तक जो काम किया है उसका आज तक भुगतान नहीे हुआ है। जांच अधिकारी द्वारा पूछने पर ग्राम सचिव ने ये माना कि इस काम का अभी तक कोई भुगतान नहीं हुआ र्है। सचिव ने कहा कि जल्द ही करा दूंगा मेरी तो बस कुछ ही महीने पहले यहां पर पोस्टिंग हुई है। लोगों ने ये भी शिकायत कि काम मांगने पर ग्राम पंचायत सचिव काम नहीं देते है। जांच अधिकारी ने जब सचिव से ये पूछा कि रोजगार मांग फार्म कहा है तब सचिव बगले झांकते हुए बोल कि अभी तक ब्लाक से लाये नहीे हैं। 10 लोगो ने लिखित शिकायत किया कि हम लोगो से नरेगा (NREGA) के तहत जनवरी 2009 में कार्य कराया गया, मगर आज से दो दिन पहले घर आकर प्रधान पति अशोक कटियार ये कह कर हम लोगों को नगद भुगतान किया कि वो कार्य मैने व्यक्तिगत कराया है। जांच अधिकारी द्वारा ये सवाल पूछने पर कि महिलाओं को कितने जाब कार्ड बने है। ग्राम सचिव ने बताया कि अभी तक एक भी महिला का जाब कार्ड नहीं बना है। जांच अधिकारी ने राजेश कुमार सिंह ने ग्राम सचिव महैन्द्र कुमार गौतम को डांट लगाते हुए कहा कि कल 28 अगस्त शाम तक सारे रिकार्ड लेकर हमारे अॅाफिस में आकर मिलो और जो भी रजिस्टर पूरा नही है वो सभी लेकर आना। इसके बाद जांच अधिकारी ने आज की अपनी जांच प्रक्रिया को बन्द करके कानपुर रवाना हो गये। इसके बाद शंकर सिंह ने सभी मजदूरों के साथ बैठकर आगे की संघर्ष की भावी रणनीति पर चर्चा कि और उसकी योजना बनाई।

Report By, Mahesh & Sahankar Singh

“Asha Pariwar”, Kanpur

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