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गुरुवार, 27 जनवरी 2011

RTI activist shot at in Sonbhadra

RTI activist Dr Amarnath Pandey was shot at in Sonbhadra in Uttar Pradesh on Wedneday night. He has been admitted to Benaras Hindu University hospital.
Dr Amarnath, a homeopath by profession, has exposed alleged corruption in the NREGA work at Bhatauli village by the Block Development Officer and Village Pradhan.


http://ibnlive.in.com/news/up-rti-activist-shot-at-in-sonbhadra/141664-3.html

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

सूचना का अधिकार कानून: संगोष्ठी: चुनौतियाँ और समाधान

साथियों,
अभिवादन,

देश में सूचना का अधिकार कानून लागू हुए 5 वर्ष हो गए. इन पांच वर्षों में इस क़ानून से जिस परिणाम की हमसबको अपेक्षा थी वह तो हासिल नहीं हो सका लेकिन जन जागरूकता से व्यवस्था में बदलाव की कुछ सुखदस्थितियां अवश्य बनी है.
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय NAPM, सूचना का अधिकार अभियान .प्र, एवं तमाम जन संगठनो के सततप्रयास से जहाँ एक तरफ इस कानून के प्रति आम जनता की जागरूकता बढ़ी है. वहीँ सूचनाओं पर कुंडली मारे बैठेअधिकारियों के ऊपर भी कुछ दबाव अवश्य बना है.
फिर भी अभी काफी कुछ करना और होना शेष है.
इन पांच वर्षों में हमारे अच्छे बुरे अनुभव को आपस में बाँटने और इस क़ानून के प्रति जनता की जागरूकता तथाअधिकारियों की जवाबदेही बढ़ाने के उद्देश्य से सूचना का अधिकार अभियान .प्र, ने अन्य सहयोगी संगठनों केसाथ मिल कर वाराणसी में एक पांच दिवसीय कार्यक्रम 14 दिसंबर से 18 दिसंबर तक आयोजित करना तय कियाहै.
कार्यक्रम की प्रस्तावित रूपरेखा निम्न है.
इस दौरान प्रत्येक दिन परामर्श शिविर एवं .प्र. राज्य सूचना आयोग की कार्य प्रणाली में वांछित सुधार के लिएहस्ताक्षर अभियान चलता रहेगा.

14 दिसंबर 2010 : सूचना का अधिकार कानून : 5 वर्ष की उपलब्धियां
15 दिसंबर 2010 : सूचना का अधिकार कानून : सामान्य जानकारियां
16 दिसंबर 2010 : सूचना का अधिकार कानून : क्या करें? क्या करें ?
17 दिसंबर 2010 : नुक्कड़ नाटक एवं लोकगीत
18 दिसंबर 2010 : सूचना का अधिकार कानून: संगोष्ठी: चुनौतियाँ और समाधान (विकास भवन वाराणसी के सभागार में)

आप से विनम्र अनुरोध है कि इस कार्यक्रम के लिए अपने सुझाव दें और अन्य सभी साथियों सहित अपनी सक्रियभागीदारी सुनिश्चित करें.



निवेदक:

सूचना का अधिकार अभियान .प्र,

Vallabh Pandey, 9415256848

सोमवार, 26 अप्रैल 2010

मजदूरो की हुई जीत

मजदूरो के आन्दोलन के दबाव में झुका आई० आई० टी कानपूर
आई० आई० टी कानपूर के विसिटर होस्टल से निकले गए १६ कर्मचारियों को विरोध में खड़े हुए हमारा मंच और अन्य आई० आई० टी कर्मचारियों के आन्दोलन करने की घोषणा के बाद दबाव में आये आई० आई० टी प्रसाशन और ठेकेदारों ने उन्हें फिर से काम पर वापस ले लिया.
आई आई टी कानपुर, जिसका नाम सुनते ही लोग क्या क्या सोचने लगते है, की वह कितनी अच्छी और खुबसूरतजगह है, और देश को कितना कुछ दे रही है, आई आई टी कानपुर। पर कभी भी वहाँ पर काम करने वाले डेली वोर्केर या ठेका मजदूर या कामगारों की के बारे में कोई सोचना भी नहीं चाहता। सोचने वाली बात है की जो आईआई टी देश के विकास के लिए कितना कुछ कर रही है (आई आई टी के अनुसार / अखबार के अनुसार) वो अपनेवहाँ काम करने वाले इन कामगारों के विकास के लिए करने की बात तो दूर, बात भी करना नहीं चाहती।

आई आई टी कानपुर के विसिटर होस्टल में ३१ मार्च २०१० को ठेका बदलने पर वहाँ पर काम करने वाले १६ लोगोको काम पर से हटा दिया गया और उनकी जगह नये लोगों को रख लिया गया। सोचने वाली बात यह है की जबलोग रखने ही थे तो लोगो को काम पर से हटाया ही क्यों गया। इसका एक सीधा सी कारन जो निकल कर आया वोये था की वहाँ पर पर काम कर रहे कुछ अधिकारियों के लोगों (जो या तो उनके रिश्तेदार थे, या उनकी जय जयकारकरने वाले थे) को काम पर रखना था। अब ये सोचने वाली बात है की जो आदमी पिछले कई सालो से वहाँ पर कामकर रहा था उसको तुम ने कितनी आसानी से कह दिया की अब आपको आने की जरुरत नहीं है, और आपका कामख़त्म किया जाता है। किसी ने ये नहीं सोचा की वो कल से क्या नया करने लगेगा या कल से उसके घर में कैसेकाम होगा, कल को उसका बच्चा उससे पूछे की "पापा आप काम पर क्यों नहीं जा रहे है" तो वो क्या जवाब देंगे, किसी ने सोचने की जरुरत भी नहीं सोची।

लेकिन जो साथी काम पर से हटाये गए थे उन्होंने ने इस बात को सोचा और कहा की हम हार नहीं मानेगे, और सभीसाथियों ने मिल कर इस पर बात की और ये निर्णय लिया की कुछ भी हो हम काम वापस लेकर रहेंगे। इन
साथियों ने "हमारा मंच" के साथ बैठक की और आगे के लिए कुछ निर्णय लिया आई आई टी प्रशासन पर दबाव बना औरप्रशासन ने अपना यही पुराना तरीका अपनाया की १६ में से १० लोगों को वापस काम पर रख लिया गया, और सोचाहोगा की अब हम किसी को नहीं रखेगे और इनकी लड़ाई भी कमज़ोर हो जाएगी। पर ये बड़ी अच्छी बात है की जिनसाथियों को वापस काम मिल गया था उन्होंने बाकी साथियों कहा साथ नहीं छोड़ा और जो प्रशासन की सोच थीउसको सफल नहीं होने दिया और सारे साथियों ने मिलकर बात की और कुछ संगठनों से बात कर सहयोग माँगा, जिसमे कर्मचारी संगठन, आई आई टी कानपुर ने इनका पूरा साथ दिया और इनकी लड़ाई में पूरा योगदान दिया।प्रशासन के उपर काफी दबाव बनाने के बाद प्रशासन को मज़बूरी में इनको काम पर वापस रखना पड़ा।

ये पहिली बार नहीं हुआ है की आई आई की कानपुर के अंदर लोगों को काम पर से हटाया गया हो, लेकिन साथियोंअब ये सोचना पड़ेगा की कब तक ये लोगों को काम पर से हटायेंगे और फिर कुछ प्रशासन पर दबाव बनाकर उनकोकाम वापस मिलेगा। अब सभी साथियों को एक होकर कुछ ठोस कदम लेना होगा, आखिर कब तक आई आई टीप्रशासन अपनी मर्जी से काम करेगा, आखिर ये सरकारी संस्थान है इसके कुछ कायदे - कानून है, इन कायदेकानून को ये अपनी मर्जी से तो मानने वाले नहीं है, तो हम सभी साथियों लोगों को एक होना होगा और एकसंगठित ताकत बनानी होगी, जिसका डर आई आई टी कानपुर प्रशासन की नीद उड़ा दे, और हम लोगों अपने घरमें चैन की नीद सोये।

मजदूर है , मजबूर नहीं....
हम अपना हक लेकर रहेंगे...

दीन दयाल सिंह
हमारा मंच

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

लोगो के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करता आई० आर० सी० टी० सी०

IRCTC के पास नहीं है कोई जबाब, पूड़ी सब्जी कब होती है खराब

सूचना अधिकार अभियान कानपूर के साथी आर० के० तिवारी ने आर० टी आई० के तहत जब इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिजम कारपोरेशन से ये सवाल पूछा की पूड़ी सब्जी के बंद डिब्बे पर आई० आर० सी० टी० सी० लिखा रहता है तो कारपोरेशन निर्माता है या विक्रेता तो कारपोरेशन बगले झांकते नजर आ रहा है। कारपोरेशन के नियमानुसार पूड़ी सब्जी बनने के २ घंटे के अन्दर खाने के लिए बेहतर होती है। क्या डब्बे पर उत्पादन का समय और डेट लिखा जाता है। नियमनुसार क्या हर २ घंटे पर ताजा भोजन उपलब्ध कराया जाता है. क्या यह सुनिश्चित किया जाता है की वेंडर के पास एक दिन पहले बनी पूड़ी नहीं रखी है। क्या हर स्टेसन और रेलगाड़ी पर ख़राब हुए भोजन को नष्ट करने का कोई रिकार्ड रखा जाता है। क्या बंद डिब्बे की पूड़ी सब्जी खराब होने पर किसी अधिकारी के यंहा शिकायत दर्ज करने की व्यवस्था है। सूचना अधिकार के तहत पूछे गए इन सारे सवालो के प्रतिउत्तर में आई० आर० सी० टी सी० के जन सूचना अधिकारी ने लिखा है की इस सन्दर्भ में उनके पास कोई सूचना नहीं है।लाखो लोगो के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने के साथ साथ रेलवे विभाग सूचना अधिकार अधिनियम २००५ का उलंघन भी कर रहा है।




( साभार हिदुस्तान कानपूर)
महेश कुमार
सूचना अधिकार अभियान कानपूर

शुक्रवार, 26 मार्च 2010

सतेन्द्र दुबे केस का फैसला आज


सत्येन्द्र दुबे की शहादत को याद करने की जरुरत
आज सत्येन्द्र दुबे को याद करने की जरुरत है जिन्होंने स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना में निदेशक के पद पर कार्य करते हुए उस परियोजना में हो रहे भ्रस्टाचार के खिलाफ इस देश के प्रधानमंत्री को ख़त लिखा। प्रधानमंत्री कार्यालय से वो ख़त उन भ्रष्ट माफियाओं के हाथ पंहुचा, जिन्होंने स्वर्णिम चतुर्भुज में हो रहे भ्रष्टाचार का उजागर करने वाले सच के सिपाही सतेन्द्र दुबे की 27 नवम्बर 2003 को गोली मारकर हत्या कर दी. आजादी के बाद गाँधी जी के हत्या से शुरू हुई सच के हत्याओं का सिलसिला शंकर गुहा नियोगी. अवतार सिंह पाश, सफ़दर हासमी, रहमत वसाले, सरिता, महेश, मजुनाथान ललित नारायण और सतीश सेठी जैसे लोगो को शहादतो के बाद भी जारी है. सत्य की रक्षा और भ्रस्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले इन लोगो की हत्याओं में सरकार किन्ही न किन्ही रूप में हमेशा शामिल रही है. साथ ही हम समाज के लोग जो इन हत्यों के बाद ख़ामोशी ओढ़ लेते है उतने ही जिम्मेदार है. हत्यारे आज भी बेख़ौफ़ हमारे बीच फिर से किसी और सच की हत्या के लिए घूम रहे है. न्यायपालिका की फैसले की लम्बी प्रक्रियाओं के बाद भी दोषियों को सजा न मिल पाना, भ्रष्टाचारियों और अपराधियों के हौसले को और बुलंद कर रही है. आज जरुरत है हम समाज के लोगो को आगे आने की इन दोषियों के खिलाफ खड़ा होने की ताकि फिर से किसी सत्य के सिपाही सतेन्द्र दुबे की हत्या न हो सके. आज 7 साल के बाद सत्येन्द्र दुबे केस का फैसला आ रहा है उम्मीद है की न्याय पालिका उन हत्यारों और उस साजिश में शामिल लोगो को सजा देकर आम आदमी का लोकतंत्र और न्यायपालिका में विश्वाश को मज़बूत करेगी। आज की और आगे आने वाली युवा पीढ़ी के लिए सतेन्द्र दुबे हमेशा आदर्श और प्रेरणा के स्रोत बने रहेंगे।
महेश

शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 का तीन दिवसीय कैम्प सम्पन्न

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 का तीन दिवसीय कैम्प सम्पन्न

आज दिनांक 06 फरवरी 2010 को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 का तीन दिवसीय कैम्प सम्पन्न हुआ। यह कैम्प जिलाधिकारी, लखनऊ के परिषर में आशा परिवार और जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के बैनर तले सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा 04 फरवरी 2010 से 06 फरवरी 2010 तक आयोजित किया गया था। इस कैम्प का मुख्य उददेश्य यह था कि आम जनता जो सरकारी विभागों से अपने हक को जानने व पाने के लिए परेशान रहती है वह सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 का प्रयोग करके प्राप्त कर सकती है। वह अपने कार्यों की जानकारी, अपने से जुडे उन तमाम आवेदन पत्रों की स्थिति जो उसने विभागों को इस आशय से दिया था कि निश्चित समय में इन पर कार्यवाई होगी और हमारा हक हमें प्राप्त हो जायेगा।
इस तीन दिवसीय कैम्प में करीब 350 लोगों ने जानकारी के साथ आवेदन पत्रों को तैयार करने के विषय में जानकारी प्राप्त की। इस कैम्प में लोगों को जानकारी देने से लेकर आवेदन बनाने का कार्य किया गया। इसमें तमाम विभागों से संबंधित मामले सामने आये। जैसे- विधवा पेंशन के फार्म लोगों ने कई साल पहले भरे थे लेकिन उसका जवाब अभी तक नहीं मिला और तो और, उनका फार्म अब कहाँ है यह भी उन्हें नहीं पता। बडी मुश्किल से ये लोग अपना आवेदन समाज कल्याण विभाग तक पहुंचा पाते हैं। क्योंकि उसमें की जो फारमेल्टीज हैं उन्हें पूरा करने में तमाम खर्च के अलावा बहुत दौड-धूप करनी पडती है तब जाके कहीं फार्म जमा करने की नौबत आती है। यह करना एक आम आदमी के लिए बडी मुश्किल की बात है जिसे खाने के लाले पडे हों। इसी तरह से अपने सरकारी विभाग से रिटायर कर्मचारी कई सालों से विभाग के चक्कर लगाते हैं कि मेरी पेंशन समय से मिल जाये और प्रमोशन के हिसाब से मिले । इसके लिए उन्होंने विभागों के छोटे कर्मचारी से लगाकर बडे अधिकारियों को आवेदन दिया लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ। अब हार थक कर बैठ चुके है। इसी तरह का मामला है कि एक वरिष्ठ लिपिक सिविल कोर्ट लखनऊ में कर्मचारी थे बेचारी बीमारी का शिकार हो गये और अपना इलाज मेडिकल कालेज से लगाकर बडे-बडे अस्पतालों में कराया। ठीक तो हो गये । जितनी बीमारी में तकलीफ नहीं थी उतनी भागदौड करके अब परेशान हैं क्योंकि उन्हें मेडिकल खर्च नहीं मिल पा रहा है। जिसको प्रार्थना पत्र देते हैं । एक महीने बाद जाते हैं तो पता चलता है कि उनका प्रार्थना पत्र ही गायब हो गया है। कोई अपनी भर्ती प्रक्रिया को लेकर रो रहा है। एक सज्जन ने 1997 में उत्तर रेलवे में सफाई कर्मी के पद के लिए आवेदन किया था। उनका साक्षात्कार भी हुआ था और मेरिट लिस्ट में नाम भी आ गया। लेकिन बेचारे अभी भटक रहें है। क्योंकि उनसे कम नम्बर पाने वाले और साक्षात्कार न देने वालों को नौकरी मिल गयी और बराबर नौकरी कर अपनी तनख्वाह उठा रहे हैं। उन्हें क्यों नौकरी नहीं मिली । यह उनकी समझ से परे है। वह जानना चाहते हैं कि आखिर यह कैसे हुआ। मेरा नाम मेरिट लिस्ट में आने के बाद भी मैं खाली बैठा हॅू । मुझे नियुक्ति क्यों नहीं मिली। मुझसे कम नम्बर पाने वाले कैेसे नियुक्ति पा गये।
इन सब परेशानियो को जानने और अपने हक की लडाई लडने में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 ही कारगर साबित होता है। यह जानने के लिए लोगों की भीड उमड पडी। जमकर जानकारी ली। इससे उनका इतना विश्वास हो गया कि चलो अब अधिकारी कुछ नहीं करेगें तो सूचना देने के लिए तो बाध्य होगें ही। कम से कम यह तो पता चल जायेगा कि हमारा फार्म कहाॅ है और उस पर क्या कार्यवाई की गयी है। उसकी क्या स्थिति है। मेरा काम किन कारणों से रूका है। यह काम कब तक हो जायेगा। अब कोई अधिकारी ज्यादा दिन तक परेशान नहीं कर पायेगा। वह सूचना देने में बहाना नहीं कर पायेगा।
लोगों ने यह सब जानकारी पूर्णतया सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धाराओं जैसे- 6(1),6(3) समेत प्राप्त की। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 में जो धारा 6(1) है वह सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदन देने के लिए होती है जिसके तहत आवेदन किया जाता है। धारा 6(3) के तहत अधिकारी किसी भी विभाग से सूचना लाकर आवेदक को देने के लिए बाध्य होता है। वह यह बहाना करके आवेदन अस्वीकार नहीं कर सकता है कि यह सूचना या इसका कुछ भाग मेरे विभाग से संबंधित नहीं है। इन तमाम जानकारियों के अभाव में कभी-कभी आवेदक का आवेदन विभागीय अधिकारी यह कह कर वापस कर देते थे कि अरे! यह सूचना तो हमारे विभाग से संबंधित नहीं थी आप जिस विभाग से संबंधित है उसमें आवेदन करे।
उपरोक्त जानकारियों को बताते हुए और इससे जुडे कार्यकर्ताओं के सम्पर्क सूत्र देते हुए, लोगों को जानकारी उपलब्ध करायी गयी। जो लोग आवेदन नहीं बना पाते थे उनको आवेदन बनाना बताया गया। इसको हिन्दुस्तान दैनिक अखबार ने 05 फरवरी 2010 के अंक में प्रकाशित भी किया। इसमें मुख्य रूप से और सामाजिक क्षेत्रों से जुडे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया और लोगों को जानकारी से लेकर आवेदन बनाने में मदद की। चुन्नीलाल ( जिला समन्वयक, आशा परिवार), आशीष कुमार, उर्वशी जी, नसीर जी कार्यकर्ता, आशा परिवार व मानव मूल्य रक्षा समिति की अध्यक्षा श्रीमती लक्ष्मी गौतम जी व सामाजिक कार्यकर्ता तथा मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित व एन0ए0पी0एम0 के राष्ट्रीय समन्वयक डा0 संदीप पाण्डेय जी ने मुख्य रूप से भाग लिया। विशेष जानकारी देने के लिए और सहयोग के लिए सभी का धन्यवाद।
भवदीय,
चुन्नीलाल
(जिला समन्वयक, आशा परिवार)
मे0 नं0 09839422521

सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

आर0 टी0 आई0 के सिपाही सतीश सेठ्ठी को कानपुर ने दी श्रद्धांजलि

आर0 टी0 आई0 के सिपाही सतीश सेठ्ठी को कानपुर ने दी श्रद्धांजलि

जन सूचना कानून के तहत जानकारी हासिल करने की सजा मौत के रूप में सतीश सेठ्ठी को मिली। पुणे क्षेत्र केतमाम भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने वाले इस युवा को किसी अज्ञात लालाची ने धारदार हथियार से मारकर मौतके घाट उतार दिया। केन्द्र सरकार द्वारा जनता के हाथ दिये गये इस अहिंसक हथियार का असामाजिक तत्वो परइस कदर खौफ छाया है कि कागज और कलम के सिपाही को बेरहमी से पीट रहे है लेकिन अब एक कदम आगेबढते हुए ये दहशतगर्द लोगों को कत्ल करने लगे है। जिसका गवाह रास्ते पर बिखरा सतीश सेठ्ठी का खून है।
भले ही केन्द्र सरकार ने आर0 टी0 आई0 के रूप में जनता के हाथ एक हथियार दिया हो लेकिन सरकार केउदासीनता के कारण ही हर रोज देश के किसी किसी कोने में कोई आर0 टी0 आई0 का सिपाही सरेबजार पीटाजा रहा है। प्रश्न है इसका जिम्मेदार कौन है, मरने वाला आर0 टी0 आई0 का सिपाही सतीश वक्त के साथ इतिहासके पन्नों में गुम हो जाय, लेकिन इस देश का हर जागरूक नागरिक उसकी शहादत को हमेशा याद रखेगा। जिसकाउदाहरण पुणे से सैकड़ो मील दूर कानपुर की सड़को पर जुलूस के रूप में दिखाई दिया। कानपूर
शहर के विभिन्न सामाजिक आर0 टी0 आई0 कार्यकर्ताओं ने एकजुट होकर सतीश को श्र्रद्धांजलि दी साथ हीवाहन यात्रा के रूप में सतीश के उपर हुए अत्याचार को जनता तक पहुंचाने का सफल प्रयास किया। यह वाहनयात्रा शिक्षक पार्क से शुरू होकर बड़े चैराहा पहुंची जहां नुक्कड़ सभा कर सतीश की शहादत को याद करते हुएआर0 टी0 आई0 के बारे में लोगों को जानकारी दी। यहां से यह वाहन काफिला कचहरी की तरफ चला वहां पहुंचकर नुक्कड़ सभा करने के बाद आगे नवीन मार्केट से होते हुए मूलगंज चैराहा पहुंचा। मूलगंज चैराहे पर सभा मेंबोलते हुए आर0 टी0 आई0 कार्यकर्ता दीपक मालवीय ने कहा कि सतीश सेठ्ठी की शहादत को हम बेकार नहींजाने देंगे। सतीश सेठ्ठी की खून की एक एक बूंद भ्रष्टाचार की ताबूत में अंतिम कील साबित होगी। कानपुर केनागरिको से अपील करते हुए उन्होने कहा कि आप सभी एक एक आर0 टी0 आई0 आवेदन जरूर लगाये यही सहीअर्थो में सतीश सेठ्टी की शहादत की श्र्रद्धांजलि होगी। यहां से ये यात्रा मेस्टन रोड होते हुए फूलबाग पहुंची जहांगांधी प्रतिमा के सामने गांधी जी की शहीदी दिवस को याद करते हुऐ 2 मिनट का मौन रखकर, इस आन्दोलन कोऔर आगे ले जाने की प्रतिज्ञा की गयी।
इस वाहन यात्रा में स्थानीय लोगो की भागीदारी काफी रही। इसमें सूचना का अधिकार अभियान 0प्र0, जनचेतना कलामंच, लोकसेवक मंडल, जन सूचना जागृति मिशन, सूचना जनहिताय जागरूकता केन्द, सेवियर, एन00 पी0 एम, आशा और अन्य मजदूर संगठन तथा जनसंगठनों ने प्रमुख रूप से भागीदारी की
महेश

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