गुरुवार, 6 मई 2010

मान्यवर कांशीराम शहरी गरीब आवास योजना के तहत आवास के नाम पर धोखा

भूखे मरने से बेहतर है अपने हको के लिए लड़ कर मरना ......

(लखनऊ में सरकार द्वारा उजाड़ी गई बस्ती के लोगो को मान्यवर कांशीराम शहरी गरीब आवास योजना के तहत आवास दिए जाने के नाम पर
उ०प्र० सरकार ने बस्ती के लोगो को धोखा दिया)

हमेशा से सरकार के झूठे आश्वासन पर जनता विश्वास करती चली आई है | लेकिन अब जनता को भी सब मालूम हो चुका है कि सरकार की नीति ही बुरी है | जो हमेशा झूठे आश्वासन के अलावा और कुछ भी गरीब जनता को नहीं दे सकती है | इसी झूठे आश्वासन के कारण ही आज शहर की आम जनता खुले आसमान के नीचे रह रही है | इस जनता को सभी मौलिक अधिकारों से वंचित रहना पड़ रहा है | झूठे आश्वासन दे-दे के इनको हमेशा से अँधेरे में रखा जा रहा है | जिसका जीता जागता उदाहरण है- शहीद स्मारक पर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे ग़रीब बस्तियों के वो तमाम महिला-पुरुष | जो रोज कमाते हैं और रोज खाते हैं | जिस दिन ये लोग मजदूरी नहीं करेन्गे शायद उस दिन इनके परिवार को खाना भी नसीब नहीं होगा | लेकिन सरकार को इन लोगों की कोई परवाह नहीं है हाल में ही इन लोगों को आश्वासन दिया गया था कि आप लोग मान्यवर कांशीराम शहरी गरी आवा योजना मेंफार्म भर दीजिये | जिसमे आपको निःशुल्क मकान दिये जायेंगे | गरीब जनता को क्या पता था कि यह हमारे साथ धोखा किया जा रहा है | भोली भाली जनता ने फिर एक बार इनके झूठे आश्वासन पर विश्वास कर लिया औरकाम-काज छोड़ कर सिर के ऊपर छत पाने का सपना देखने लगी | फार्म भरे गए | सरकारी कर्मचारियों द्वारा इनलोगों का सत्यापन भी किया गया | यह सत्यापन झूठी मानसिकता रखने वाले बड़े-बड़े अफसरों के इशारे पर किया गया था जो यह मान रहे थे कि शहर की इन बस्तियों में रहने वाले लोग बंगलादेशी हैं | सत्यापन में खुलासा भी हो गया कि ये लोग उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों के रहने वाले गरीब मजदूर हैं जो रोजी रोटी की तलाश में शहरकी तरफ अपना मुख किया है | जाँच होने के बाद ये लोग निश्चिन्त हो गए कि चलो जो फार्म भरे गए थे उनकासत्यापन हो गया है | तो शायद अब मकान मिल ही जायेगा | लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था | पूरे डेड़ सालगुजर गया | लेकिन अभी तक इन्हें मकान और अन्य अधिकार नहीं मिले | अपने अधिकारों से वंचित औरसरकार की नीतियों से परेशान होकर आखिर इन लोगों ने धरने का रुख अख्तियार कर लिया |
|

सरकार तेरी नीति बुरी है, झूठे आशवासन पर जनता मरी है....

शहरी गरीब आवास हमारे लिए नहीं तो, किसके लिएआदि नारों से धरने की शुरुआत मई २०१० से शहीद स्मारक, लखनऊ से हुयी | दिन रात इन लोगों का धरनाजारी है | अपने काम काज छोड़ कर यह लोग धरना दे रहे हैं | इस बार इन लोगों ने प्रण किया है कि हम लोग कोईभी ज्ञापन जैसी चीज नहीं देंगे और ही किसी के झूठे आश्वासन पर अपना धरना समाप्त करेंगे | हमारा धरना समाप्त होगा तो अपना घर लेकर ही | रात- दिन धरने पर ये लोग बैठे हैं और सामाजिक कार्यकर्ताओं और लोगों कीमदद से इनका पेट भर रहा है | प्रशासन की उदासीनता को देखिये कि जहाँ पर ये लोग धरना दे रहे हैं और शहीदोंकी स्थली शहीद स्मारक पर वैसे भले ही दिन रात बत्तियां जलती हों लेकिन जबसे इन गरीब लोगों ने अपना धरनाशुरू किया है | प्रशासन ने यहाँ की बत्तियां ही बुझा दी हैं | ताकि इन लोगों के साथ कोई भी रात में हमला कर दे, अँधेरा होने से हे लोग अपने घरों में चले जायेंगे | लेकिन प्रशासन शायद ये भूल चुका है कि जिसका घर ही नहीं है वो कहाँ जायेगा और जिसने कभी बिजली-बत्ती का मुख देखा ही नहीं है उनके लिए यह अँधेरा क्या चीज है | लेकिन हमारे प्रशासन और सरकार की मानवता यहीं से साफ़ नजर आती है कि वो कितना मानवीय और संवेदनशील है |

धरने के पहले दिन तो कोई झाकने नहीं आया कि आखिर इन लोगों को क्या तकलीफ है कि यहाँ जमावड़ा लगा के बैठे हैं | दूसरे दिन कुछ सरकारी नौकर आये भी तो, सब के सब नंगे | कोई कह रहा है कि हम ट्रांस गोमती .डी.एम. है, तो कोई कह रहा है कि हम सिटी मजिस्ट्रेट हैं | जब पूंछा गया कि हाँ भाई बताएं कि आप लोग क्यालाये है तो पता चला कि वो नंगे होकर आये है उनके पास केवल वही झूठे आश्वासन है | जिसके कारण आज तक इस भोली-भाली जनता को बहकाते चले आये हैं | वह इस बार भी यही सोंच रहे थे कि चलो हम फिर इस जनता से झूठ बोलेंगे और यह अपना धरना तोड़ देंगे, लेकिन यह शायद उनकी भूल थी | धरना बिलकुल डग-मगाया तक नहीं | इन लोगों के झूठे आशवासन पर धरना प्रदर्शनकारियों का हौसला और भी मजबूत हो गया और उनके इरादे भूख हड़ताल के लिए मजबूत हो रहे हैं | क्यों कि अब इन लोगों ने ठान लिया है कि भूखे, नंगे, बीमार, प्रताड़ित होकर मरने से कहीं अच्छा है कि शहीदों की तरह अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ते मरना कहीं अच्छा है |

लेखक: चुन्नीलाल
(सामाजिक कार्यकर्ता, आशा परिवार)