बुधवार, 30 मार्च 2011

भ्रष्टाचार के खिलाफ इस आन्दोलन को गति दे...........

जागो कानपुर जागो
आदरणीय नागरिको,


* क्या बिना पैसे खर्च किये गरीब आदमी को BPL कार्ड मिलता है ?
* क्या बिना सुविधा शुल्क दिए सरकारी विभाग/कार्यलयों में आपका जायज काम होता है ?
* क्या घूस और भ्रष्टाचार आम हो गया है, इतना की पुलिस से न्यायपालिका, सेनापति व् लोकसभा तक इसका कोढ़ लग चुका है ?
* जापान जैसा संपन्न देश को सुनामी ने हिला दिया. क्या ठीक उसी प्रकार भारत को अनेक उपलब्धियाँ भ्रष्टाचार के प्रवाह में बही जा रही है ?
* क्या आप भ्रष्टाचार और बेईमानी से उब गये है, और "घूस को घूँसा" देना चाहते है ?

तो आगे पढ़िए:-
सुप्रसिद्ध समाज सेवक आन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए "जन लोकपाल" की नियुक्ति के लिए अभियान चलाया है. गत ३० जनवरी ( गाँधी जी के शहादत दिवस) को दिल्ली के रामलीला मैदान में हजारों नागरिको ने अन्ना हजारे का समर्थन किया जिसमें प्रबुद्ध नागरिक डा० किरण बेदी, स्वामी अग्निवेश, शांति भूषण, आर्च विशप विंसेट, अरविन्द केजरीवाल प्रशन भूषण इत्यादी उपस्थित थे.
इस मांग को लेकर, और भ्रष्टाचार का विरोध करने के लिए, अन्ना हजारे आगामी 05 अप्रैल 2011 से आमरण अनसन पर बैठेंगे. India Against Corruption संस्था ने उनके समर्थन में अपील किया है की जगह जगह उसी 5 अप्रैल को सांकेतिक अनसन और जनजागरण का आयोजन किया जाय.
कानपुर ने इस आन्दोलन को सफल बनाने के लिए
कुछ कार्यक्रम तय किये है आप इन कार्यक्रमों में शामिल होकर भ्रष्टाचार के खिलाफ इस आन्दोलन को गति दे.
 कार्यक्रम दिन, स्थान और समय : 5 अप्रैल २०११
  •  10 बजे सुबहः- मौन उपवास/ अनसन प्रारम्भ, गांधी प्रतिमा, फूलबाग, कानपुर 
  • 5.30 बजे सायंकाल:-  शिक्षक पार्क से फूलबाग, कानपुर  तक पद यात्रा (मोमबत्ती सहित)
  •  6.00 बजे सायंकाल:- जन सभा (मोमबत्ती सहित) गांधी प्रतिमा, फूलबाग, कानपुर 
  •  6.30 बजे सायंकाल:- भ्रष्टाचार विरोधी संकल्प सभा व उपवास समापन, गांधी प्रतिमा, फूलबाग, कानपुर 

आपकी प्रतीक्षा में
छोटे भाई नरोना, जगदम्बा भाई, कुलदीप सक्सेना, विजय चावला, दीपक मालवीय, विजया रामचंद्रन, अत्तर नईम , मनोज सेंगर,
महेश
महेश ९८३८५४६९००

शुक्रवार, 4 मार्च 2011

सामाजिक कार्यकर्ता नियमत अंसारी की लाठियों से पीट कर हत्या ...

सत्य की एक और सिपाही की हत्या ...
  • सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता नियमत अंसारी की रांची में लाठियों से पीट कर हत्या 

गाँधी जी की हत्या से शुरू हुई सत्य की हत्या का सलिसिला रुकने का नाम ही नहीं ले रहे है. भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले शहीद मंजुनाथन, सतेन्द्र दुबे, ललित, अमित जठवा के साथ कल एक और नाम जुड़ गया झारखण्ड के सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता नियामत अंसारी का, जिनकी २ मार्च को रांची में लाठियों से पीट पीट कर हत्या कर दी गई. वे मनिका ब्लाक में पिछले ५ वर्षो से मनरेगा में व्यापत भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे....
Murder of Activist Niyamat Ali condemned, judicial probe demanded

Ranchi: Condemning the brutal murder of activist Niyamat Ansari, members of different people’s organizations and senior social and human rights activists demanded judicial probe in the case. To protest the murder which took place on 2nd March, dozens of activist gathered at Albert Ekka Chowk here in the evening today and staged a protest march.

Senior social activist and friend of Niyamat Ansari, Gurjit Singh speaking after the march said, “The murder of Niyamat once again reminds us that the social activists are not safe in the state”. Referring to past incidents he demanded, “It is the responsibility of the government to ensure safety and security of those who are fighting against corruption and implementing government schemes and acts”.

United Milli Forum (UMF), Jharkhand’s Co-convener, Afzal Anis demanded that, “The family of Ansari must be given compensation of Rs. 10 lakhs and at-least one family member of the diseased should be granted government job since he has been killed implementing government act”.

After the protest march, a fact-finding team has also been formed to visit the place of crime and investigate the case. The team to be coordinated by civil rights activist Mahtab Alam will be visiting the area on Sunday. The 10-member team comprises of Human Rights Activists, Journalists and Researchers.

According to Gurjit Singh, on Wednesday around 7 pm, Niyamat was picked up from his house and beaten mercilessly. He succumbed to injuries before his relatives could take him to the nearest hospital in Latehar.

Niyamat Ansari, a resident of Kope Gram Panchayat (Manika Bloack), has been working for the rights of NREGA workers in this area during the last few years. Together with other local activists, he fearlessly exposed many cases of fraud in NREGA. On 20 February 2011, Niyamat and his friends exposed a case of brazen embezzlement of NREGA funds in Rankikala Gram Panchayat. In response to this report, an FIR was lodged against the main culprit, Kailash Sahu, former BDO of Manika. More than two lakhs of rupees were also recovered from him and his accomplice, the Panchayat Sevak of Rankikala. While the BDO and Panchayat Sevak were caught because their names are on the fudged records, Shankar Dubey, a notoriously corrupt local contractor is still free. Local activists strongly believe that the goondas who had come to his house were Shankar Dubey's men.

Courtesy ...http://www.twocircles.net/

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

कानपुर में जन संगठनों की एक मंच पर आने की पहल


नागरिक स्वतन्त्रता को बचाने के लिए शुरू हुए एक-जुट प्रयास
देश और कानपुर में नागरिक अधिकारों के लिए लड़ने वालों के दमन की बढती घटनाओं के विरोध में वामपंथी, सर्वोदयी. समाजवादी, मानवता वादी आंदोलनों से जुड़े लोग धीरे धीरे एक मंच पर आने की पहल शुरू कर दिए है. आज कानपुर खलासी लाइन शःस्त्री भवन में हुई एक बैठक में कानपुर शहर के संगठनो एंव मजदूर आन्दोलन से जुड़े सभी लो एकत्रित हुए. बैठक में ये बात प्रमुख रु से उभर कर आई की कानपुर में लगातार मानवाधिकार का उलंघन होने के साथसाथ नागरिक स्वतंत्रता का हनन हो रहा है. साथ ही इस मुद्दे पर संघर्ष करने वालो और इनकी आवाज को उठने वाले लोगो और संगठनों पर प्रशासन और सरकार द्वारा उत्पीड़न किया जा रहा है. ऐसे में ये जरुरी हो जाता है की कानपुर शहर में एक ऐसा मज़बूत मंच हो जो त्वरित करवाई करते हुए इस प्रकार के मामले को उठा सके और इसकी लड़ाई लड़ सके. ये तभी प्रभावी ढंग से सफल हो सकता है जब कानपुर के सभी जन संगठन और मानवता वादी लोग अपनी मतभेदों को छोड़कर इस मुद्दे पर एक मंच पर एक साथ आकर खड़े हो. इस बैठक में सभी लोगो ने मानवाधिकार कार्यकर्ता विनायक सेन पर सरकार द्वारा किये जा रहे क्रूर दमन के विरोध में  अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा की आज जिस तरह से सरकार और प्रशासन विनायक सेन जैसे सैकड़ो लोगों को जेल में बंद कर मानवाधिकार के आवाज को चुप कराने की कोशिश कर रही है उस एयाही लगता है की आने वाले समय में देश का वो हर नागरिक जो मानवाधिकार या न्याय की बात करेगा वो विनायक सेन होगा आज पोलिस और प्रशासन की नजरों में हम सभी विनायक सेन है. कब किसको पोलिसे उठाकर बंद कर दे और झूठे अपराध में जेल भेज दे ये कोई नहीं जानता. जिस तरह से पोलिसे राजनेताओं की चमचा बनी है उसे देख कर तो यही लगता है इसका तजा उद्धरण है कानपुर का दिव्या और बंद का शीलू कांड जिसमे अपराधियों को पकड़ने के बजाय पीड़ित पक्ष पर ही झूठे मुक़दमे गढ़ कर जेल भेज दिया.  बैठक में विजय चावला जी ने ये बात कही की जिस तरह से आज बड़ी बड़ी कंपनियों के हाथ हमारी सरकारे बिक गई है और सेज जैसी परियोजनाए आम आदमी के हितो का गला घोंट रही है साथ आम आदमी पर क्रूर दमन रवैया अपना रही है इस समय ये जरुरी हो जाता है की हमारे शहर में एक ऐसा मज्ब्बोत मंच हो जो नागरिक स्वतंत्र्य के मुद्दों को लेकर लड़ सके. इसलिए PUCL एक ऐसा मंच है जो लगातार देश भर के तमाम नागरिक स्वातन्त्र्य के मुद्दों को लेकर कई वर्षो से लड़ रहा है. कानपुर में हम PUCL कानपुर इकाई का गठन कर कानपुर में हो रहे तमाम मानवाधिकार के मुद्दों के लिए संघर्ष कर सकते है. बैठक में शामिल तमाम लोगो ने इस बात पर अपनी सहमति जताते हुए PUCL की कानपुर इकाई के गठन जरुरत महसूस की. बैठक में ये तय हुआ की आगामी १३ मार्च को एक बड़ी बैठक कर PUCL के प्रदेश अध्यक्ष चितरंजन भाई और अन्य पदाधिकारियो के समक्ष PUCL कानपुर की इकाई का गठन किया जायेगा. इसकी वृस्तित रूप रेखा तय करने के लिए आगामी १२ फ़रवरी को एक बैठक करने का तय किया गया. बैठक में ये भी बातचीत की गई की शहर के प्रतिष्टित लोगो जैसे साहित्यकार गिरिराज किशोर, मानवती आर्य, सईद नकवी, बार असोसिएसन और ने लोगो को इस मंच पर लाने की पहल किया जाय जिससे एक मज़बूत और प्रभावशाली मंच बन सके जो नागरिक स्वतंत्र्य के मुद्दों को मजबूती से लड़ सके. आज के इस बैठक में दीपक मालवीय, विजय चावल, विष्णु शुक्ला, कुलदीप सक्सेना, छोटे भाई नरोना, संजीब ,शंकर भाई, योगेश, विष्णु अग्रवाल, नीरजा, पूजा, इश्तियाक अहमद, अनुराग, अजीत खोटे, रोबी शर्मा और अन्य लोग शामिल रहे.
Mahesh Kumar
"Asha" Kanpur

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Apna Ghar
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शनिवार, 29 जनवरी 2011

लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़क पर उतरेंगे

लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़क पर उतरेंगे
भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून बनवाने के लिए जन प्रदर्शन
भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून केंद्र में लोकपाल और हरेक राज्य में प्रभावशाली और सशक्त लोकायुक्त बनवाने के लिए शिक्षक पार्क परेड से गांधी प्रतिमा, फूलबाग 30 जनवरी 2011 को, महात्मा गांधी की शहादत के दिन, दोपहर 12 बजे से कानपुर के आम लोग पैदल मार्च करेंगे।
किरण बेदी, जस्टिस संतोष हेगड़े, प्रशांत भूषण, जे. एम. लिंग्दोह और अरविंद केजरीवाल ने मिलकर भ्रष्टाचार के खिलाफ एक प्रारूप तैयार किया है। इस प्रारूप को लागू करवाने के लिए ‘‘भ्रष्टाचार के खिलाफ जनयुद्ध अभियान शुरू किया गया है। यह अभियान श्री श्री रवि शंकर, स्वामी रामदेव, स्वामी अग्निवेश, दिल्ली के आचार्य बिशप, श्री विंसेंट एम कोंसेसाओ किरण बेदी, अरविंद केजरीवाल, अन्ना हज़ारे, देविंदर शर्मा, सुनिता गोदरा, मल्लिका साराभाई ने शुरू किया है।
सोनिया गांधी जी ने कुछ दिन पहले भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल बनाने की घोषणा की थी। लेकिन सरकार जिस तरह का लोकपाल बनाने जा रही है वह दिखावा मात्रा है। बाकी एंटी-करप्शन संस्थाओं की तरह लोकपाल को भी सिर्फ सलाह देने वाली संस्था बनाया जा रहा है। यानि भ्रष्टाचार पाए जाने पर लोकपाल सरकार को अपने ही मंत्रियों के खिलाफ एक्शन लेने की सलाह देगा। क्या प्रधानमंत्री में यह राजनीतिक साहस होगा कि वह अपने किसी मंत्री के खिलाफ एक्शन ले?
भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता की तरफ से गणमान्य लोगों द्वारा तैयार किये गए लोकपाल कानून को लागू करवाने के लिए 30 जनवरी को हो रहे मार्च में आप भी आइये और अधिक से अधिक लोगों को आने के लिए कहिए।

क्या भारत बदल सकता है?
हागकाग में 1970 के दशक तक भारत से भी ज्यादा भ्रष्टाचार था।  इसके चलते पुलिस और माफिया के बीच सांठगांठ बढ़ गई। नतीजन अपराध बढ़ गया। लाखों लोग सड़क पर उतर आए और सरकार को एक कानून पास करके ‘‘भ्रष्टाचार के खिलापफ स्वतंत्रा आयोग’’ ICAC बनाना पड़ा। इस आयोग को नेताओं और अफसरों के खिलाफ जांच करने व मुकदमा चलाने का अधिकार दिया गया। एक ही झटके में इस आयोग ने 180 में से 119 पुलिस अधिकारियों को नौकरी से निकाल दिया। इससे पूरी नौकरशाही में संदेश गया कि अब भ्रष्टाचार नहीं चलने वाला। नतीज़ा ये हुआ कि आज हागकाग लगभग एक भ्रष्टाचार मुक्त देश है और ICAC सारी दुनिया के लिए एक मिसाल बन चुका है। भारत भी बदल सकता है अगर हमारे यहां भी इस तरह की कोई स्वतंत्र और शक्तिशाली संस्था बनाई जाए। हांगकाग सरकार को यह कानून इसलिए बनाना पड़ा क्योंकि लाखों लोग सड़क पर उतर आए।
भ्रष्टाचार के खिलापफ एक शक्तिशाली लोकपाल बिल बनवाने के लिए आप भी पैदल मार्च में शामिल हों।
30 जनवरी 2011, दोपहर 1200 बजे शिक्षक पार्क, परेड, कानपुर में एकत्रित हों
महात्मा गांधी को इससे बड़ी श्रद्धांजली और क्या हो सकती है।
भ्रष्टाचार के खिलापफ जनयुद्ध
कानपुरः शंकर सिंह, मो0 9956576907
ए-119, कौशांबी, गाज़ियाबाद - 201010, उ.प्र., फोनः 9717460029
E-mail:  indiaagainstcorruption.2010@gmail.com www.indiaagainstcorruption.org

गुरुवार, 27 जनवरी 2011

RTI activist shot at in Sonbhadra

RTI activist Dr Amarnath Pandey was shot at in Sonbhadra in Uttar Pradesh on Wedneday night. He has been admitted to Benaras Hindu University hospital.
Dr Amarnath, a homeopath by profession, has exposed alleged corruption in the NREGA work at Bhatauli village by the Block Development Officer and Village Pradhan.


http://ibnlive.in.com/news/up-rti-activist-shot-at-in-sonbhadra/141664-3.html

RTI activist Dr Amarnath Pandey was shot at in Sonbhadra in Uttar Pradesh on Wedneday night.

RTI activist Dr Amarnath Pandey was shot at in Sonbhadra in Uttar Pradesh on Wedneday night.
He has been admitted to Benaras Hindu University hospital.
Dr Amarnath, a homeopath by profession, has exposed alleged corruption in the NREGA work at Bhatauli village by the Block Development Officer and Village Pradhan.

http://www।indianexpress.com/news/rti-activist-shot-after-unveiling-rs-30l.../742785/

रविवार, 26 दिसंबर 2010

यह कैसा न्याय है....?

यह कैसा न्याय है....?

सत्येंद्र रंजन


विनायक सेन को उम्र कैद सुनाए जाने पर आखिर देश के जनतांत्रिक हलकों में इतनी बेचैनी क्यों है? क्या मानवाधिकार कार्यकर्ता देश के कानून से ऊपर हैं? अगर किसी को ये सवाल परेशान कर रहे हों, तो उसे विनायक सेन, नक्सली नेता नारायण सान्याल और कोलकाता के व्यापारी पीयूष गुहा को सजा सुनाने वाले रायपुर के जिला एवं सत्र न्यायाधीश बीपी वर्मा की इस टिप्पणी पर गौर करना चाहिए- फिलहाल, जिस तरह आतंकवादी औऱ नक्सली संगठन केंद्रीय अर्धसैनिक बलों, राज्य के पुलिसकर्मियों और निर्दोष आदिवासियों की हत्या कर रहे हैं, देश भर में जिस तरह का आतंक मचा रहे हैं, समाज में जैसा भय और अफरातफरी फैला रहे हैं, उसे देखते हुए यह अदालत आरोपियों के प्रति इतना उदार नहीं हो सकती कि उन्हें न्यूनतम सजा दी जाए। जाहिर है, अदालत ने आरोपियों को अधिकतम सजा दी। इनमें नारायण सान्याल को प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की पोलित ब्यूरो का सदस्य बताया गया है, जबकि पीयूष गुहा पर माओवादियों के मददगार होने का आरोप है।

मगर विनायक सेन पर क्या आरोप है? उन पर आरोप है कि वो जेल में नारायण सान्याल से मिलते रहे और उनकी चिट्ठियां उन्होंने पीयूष गुहा तक पहुंचाईं। इसके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि वे भी माओवादियों की तरह राजद्रोह और राज्य के खिलाफ षडयंत्र रचने के दोषी हैं। अदालत जिन सबूतों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंची है, उनमें कितना दम है, इस पर अभी उच्चतर न्यायालयों का फैसला आना बाकी है। बहरहाल, अभियोग पक्ष ने जिस तरह की दलीलें कोर्ट में पेश की थीं, उससे यह आम धारणा बनी थी कि उसका पक्ष कमजोर है। बल्कि उसकी कई दलीलें तो हास्यास्पद थीं। जैसे दिल्ली के इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट के प्रयुक्त हुए संक्षिप्त शब्द आईएसआई को अभियोग पक्ष ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई बता दिया। विनायक सेन की पत्नी एलिना सेन द्वारा दिल्ली की इस संस्था से जुड़े वॉल्टर फर्नांडिस को लिखी गई चिट्ठियों को पाकिस्तानी एजेंसी को भेजी गई चिट्ठियों के रूप में पेश किया। जो अभियोग पक्ष इतना नाजानकार हो, या जानबूझ कर अदालत में ऐसे भ्रम पैदा कर रहा हो, उसकी विश्वसनीयता वैसे ही संदिग्ध हो जाती है। वैसे में जागरूक जनमत की अदालत से यह अपेक्षा बेजा नहीं है कि वह अभियोग पक्ष के प्रति सख्त रुख अख्तियार करती।

बहरहाल, यह बात ठीक है कि अदालत ऐसी अपेक्षाओं के मुताबिक चलने के लिए बाध्य नहीं है। लेकिन यह तो उसका दायित्व और संवैधानिक कर्त्तव्य है कि वह ठोस सबूतों के आधार पर और अपराध के अनुपात के मुताबिक फैसला दे। नारायण सान्याल को जिस जेल में रखा गया है, वहां के अधिकारियों ने अपनी गवाही में यह साफ शब्दों में कहा कि विनायक सेन जब भी सान्याल से मिलने आए, उनकी मुलाकात अधिकारियों की कड़ी निगरानी में हुई और इस दौरान चिट्ठियों का कोई आदान-प्रदान नहीं हुआ। अदालत ने इस गवाही पर तो गौर नहीं किया, लेकिन जेल के एक दूसरे कर्मचारी की इस गवाही को बहुत अहम मान लिया कि सेन जब मिलने आए थे, तो उन्होंने सान्याल को अपना रिश्तेदार बताया था। सेन का पक्ष रहा है कि वो पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (छत्तीसगढ़) के महासचिव के रूप में सान्याल से मिलने जाते थे, उनकी सान्याल से कोई रिश्तेदारी नहीं है। क्या सेन जेल में या उसके बाहर जो भी मिलता उसके सामने पीयूसीएल और सान्याल से उसके या अपने पूरे संबंधों की व्याख्या करते हुए सान्याल से मिलने जाते? हालांकि जुबानी बातचीत का कोई सबूत संबंधित कर्मचारी के पास भी नहीं होगा, लेकिन अगर सेन ने किसी से हलके अंदाज में रिश्तेदारी की बात कह भी दी होगी, तो उससे क्या साबित हो जाता है?

अदालत ने इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट को इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस बताने वाले अभियोग पक्ष की साख पर तो कोई सवाल नहीं उठाया, लेकिन विनायक सेन द्वारा नारायण सान्याल को कथित तौर पर अपना रिश्तेदार बताने के आधार पर उनकी विश्वसनीयता संदिग्ध मान ली। और अनिल कुमार सिंह नाम के एक व्यापारी की गवाही को ठोस सबूत मानते हुए कोर्ट इस निष्कर्ष पहुंच गया कि, इससे जाहिर होता है कि अभियुक्तों की सोच में समानता थी और इससे ये तथ्य स्थापित होते हैं कि राजद्रोह की साजिश रची गई। अनिल कुमार सिंह अभियोग पक्ष का अकेला गवाह है, जिसे पीयूष गुहा की गिरफ्तारी के वक्त की बताई गई कहानी को साबित करने के लिए पेश किया गया। सिंह ने गवाही दी कि गुहा से उसके सामने तीन चिट्ठियां बरामद हुईं। गुहा से पुलिस ने पूछा कि उसे ये चिट्ठियां किसने दीं, तो उसने बताया कि विनायक सेन जेल में नारायण सान्याल से मिलते थे और ये चिट्ठियां सान्याल ने उन्हें दी थी। सिंह के मुताबिक उसने गुहा को यह कहते सुना कि सेन ने उसे चिट्ठियां देते हुए उन चिट्ठियों को कोलकाता ले जाने को कहा था।

यहां यह गौरतलब है कि अगर अनिल कुमार सिंह ने गुहा को यह कहते सुना, तब भी यह बयान पुलिस के सामने दिया गया बयान है। जज ने इस संबंध में बचाव पक्ष की इस दलील को कोई तव्वजो नहीं दी कि पुलिस के सामने दिया गया अभियुक्त का कोई बयान कानून के तहत स्वीकार्य नहीं होता। इसके विपरीत उन्होंने अपने फैसले में कहा है कि सिंह गिरफ्तारी के समय मौजूद गवाह है, इसलिए उसका बयान भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत मान्य है। तो कुल मिलाकर इस तरह वह केस बना है, जिसके आधार पर विनायक सेन को उम्र कैद की सजा सुना दी गई है। लेकिन न्यायिक निष्कर्ष तक पहुंचने के कोर्ट के अधिकार-क्षेत्र में बिना कोई दखल दिए यहां यह सवाल जरूर अहम है कि अगर विनायक सेन ने सान्याल की चिट्ठी गुहा तक पहुंचाई भी, तो क्या इस अपराध का अनुपात इतना है कि उन्हें उम्र कैद सुनाई जाए? क्या विनायक सेन पर बम बनाने या किसी की हत्या का आरोप है? या किसी खास हत्या की साजिश में शामिल होने का आऱोप है? अगर सेन का अपराध साबित भी होता है, तो यह अधिक से अधिक एक प्रतिबंधित संगठन से जुड़े दो लोगों के बीच संदेशवाहक बनने का है। क्या इसके लिए अधिकतम सजा विवेक और तर्क की कसौटी पर उचित मानी जा सकती है?

इसी बिंदु पर आकर यह सवाल खड़ा होता है कि रायपुर के जिला एवं सत्र न्यायालय का फैसला ठोस अर्थों में न्यायिक है, या इस पर एक खास तरह की राजनीतिक सोच का असर है? सजा सिर्फ विनायक सेन को दी गई है, या इसके जरिए देश के उन तमाम लोगों और समूहों को संदेश देने की कोशिश है, जो सुरक्षा, सामाजिक स्थिरता और शांति के बारे में तथाकथित मुख्यधारा सोच से सहमत नहीं हैं? और इस रूप में क्या यह फैसला असहमति की आवाज को दबा देने की कोशिशों का हिस्सा नहीं बन जाता है?

माओवादियों की राजनीति निसंदेह अराजक और नकारवादी (निहिलिस्ट) है। राजसत्ता के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर जनतांत्रिक विमर्श के दायरे को संचुकित करने में वे असल में राजसत्ता के सहायक बने हैं। इसके बावजूद गौरतलब यह है कि उन्हें देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बताने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार करते रहे हैं कि माओवादियों की देश के एक बड़े हिस्से में मौजूदगी आदिवासियों और अन्य कमजोर तबकों को न्याय से वंचित रखे जाने का परिणाम है। राजसत्ता के सबसे बड़े प्रतिनिधि की अगर यह समझ है, तो क्या यह अपेक्षा रखना उचित और न्यायपूर्ण हो सकता है कि देश के व्यापक लोकतांत्रिक दायरे में सभी लोग माओवादियों को उसी तरह अपराधी औऱ आतंकवादी मानें, जैसाकि देश के शासक वर्ग या दक्षिणपंथी समूहों की मान्यता है? और इस परिप्रक्ष्य में अगर विनायक सेन नारायण सान्याल से मिलते थे और जैसाकि अदालत नतीजे पर पहुंची है कि उन्होंने सान्याल की चिट्ठी उनके किसी सहयोगी तक पहुंचा दी, तो क्या उसके लिए सेन को राजद्रोह की कठोरतम सजा सुना दी जानी चाहिए?

चूंकि यह फैसला अगर अपर्याप्त नहीं, तो कम से कम अधूरे और महज परिस्थितिजन्य सबूतों के आधार पर सुनाया गया लगता है और उस आधार पर कठोरतम सजा सुना दी गई है, इसलिए समाज के एक बड़े हिस्से का इस फैसले के पीछे एक किसी राजनीतिक दर्शन की भूमिका देखना संभवतः गलत नहीं है। इस क्रम इस फैसले के संदर्भ में भी कमोबेश वही सवाल उठते हैं, जो अयोध्या विवाद पर पिछले सितंबर में आए इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले से उठे थे। यह प्रश्न एक बार फिर प्रासंगिक है कि न्यायिक फैसले ठोस सबूतों और उनके वास्तविक संदर्भ के आधार पर होने चाहिए, या आस्था, किसी राजनीतिक दर्शन के प्रभाव या किसी न्यायेतर उद्देश्य की पूर्ति के लिए?

इसलिए यहां सवाल यह नहीं है कि क्या मानवाधिकार कार्यकर्ता कानून से ऊपर हैं? बहुत से लोगों की इस शिकायत में दम हो सकता है कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं या संगठनों का एक हिस्सा एकांगी सोच से चलता है और भारतीय राजसत्ता के स्वरूप एवं भूमिका के प्रति बेहद नकारात्मक नजरिया रखता है। इस बात भी निर्विवाद है कि अगर कोई मानवाधिकार कार्यकर्ता कानून का उल्लंघन करता है, तो उसे जरूर सजा होनी चाहिए। लेकिन विनायक सेन के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण बात यह सवाल या शिकायत नहीं है। यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर एक जनतांत्रिक, लेकिन वर्गों में बंटे समाज में न्यायपालिका की क्या भूमिका है और उससे कैसी उम्मीदें रखी जानी चाहिए? इस संदर्भ यह सामान्य अपेक्षा है कि न सिर्फ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से संबंधित मामलों, बल्कि हर न्यायिक मामले में, निष्कर्ष तक पहुंचने और सजा की मात्रा तय करने में इंसाफ हुआ जरूर दिखना चाहिए। चूंकि विनायक सेन के मामले में इन दोनों ही पहलुओं पर तार्किकता एवं न्याय के सिद्धांतों का पालन हुआ नहीं दिखता है, इसलिए देश के व्यापक जनतांत्रिक दायरे में इतनी बेचैनी है। अयोध्या मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को साक्ष्य और तर्क पर आस्था को तरजीह देने की मिसाल माना गया था। विनायक सेन के मामले में साक्ष्य एवं तर्क पर एक खास राजनीतिक सोच को तरजीह मिलने का आभास हुआ है। इसीलिए जनतांत्रिक विमर्श में यह सवाल उठ रहा है कि क्या न्यायपालिका का एक हिस्सा लोकतंत्र के बुनियादी उसूलों पर प्रहार करने में दक्षिणपंथी- सांप्रदायिक समूहों का सहचर बन गया है?


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Satyendra Ranjan
D-001, Jansatta Appts., Sec-9,
Vasundhara, Ghaziabad (U.P.). PIN- 201012