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सोमवार, 14 सितंबर 2009

समोसा खिलाकर हड़पी नरेगा (NREGA) की मजदूरी

समोसा खिलाकर हड़पी नरेगा (NREGA) की मजदूरी
  • नानामउ में नरेगा मजदूरों के नाम पर लाखों रूपये लूटे प्रधान ने
    • नरेगा मजदूरों के एकाउंट से जबरदस्ती पैसा निकलवा हड़पा प्रधान ने
  • मानक से ज्यादा जबरदस्ती लिया जा रहा है काम
नानामउ ग्राम पंचायत के ग्राम प्रधान ने नरेगा में फर्जी मस्टर रोल भरकर करीब 100 मजदूरों के नाम पर पैसा एकाउन्ट में मंगाकर मजदूरों को ये बताते हुए कि ये पैसा गलती से आ गया है सबका पैसा नकद निकलवाकर उन्हें समोसा चाय खिलाकर हड़प लिया। जिन लोगों ने पैसा निकालने का विरोध किया उन्हे पुलिस में देने की धमकी देकर और जबरदस्ती उन्हे बैक ले जाकर उनसे पैसा निकलवाकर प्रधान राधवेन्द्र सिंह उर्फ भंवर सिंह ने हड़प लिया। गंगा नदी के किनारे बसा कानपुर नगर के बिल्हौर तहसील का ग्राम पंचायत नानामउ। पिछले साल जब नरेगा कानून कानपुर नगर में लागू हुआ तब इस गांव के भूमिहीन मजदूरों को भी आस बंधी की, अब उन्हें भूखे पेट नहीं सोना पड़ेगा। वे नरेगा में काम करके अपने परिवार को रोटी दे सकेंगे, मगर आज वो आस टूट रही है। जब जाब कार्ड बनने के बाद नरेगा का बैंक एकाउन्ट खुला तो गांव के जागेलाल बताते है, कि मैं जिंदगी में पहली बार बैंक गया था। आगे बताते है, कि नरेगा में 11 दिन काम किया बैंक में जब पेैसा आया जाकर 1000 रू0 निकाला सोचा अब दिन बहुरने वाले है, बैंक से मजदूरी मिल रही है। अब हम गरीबों की मजदूरी कोई लूट नहीे पायेगा। फिर काम बन्द हो गया करीब 1 महीने बाद एक दिन प्रधान राधवेन्द्र सिंह अपनी मार्सल गाड़ी लेकर आये और कहा कि, तुम्हारे एकाउन्ट में गलती से हमारे खाते का पैसा आ गया हैं, चलो गाड़ी में बैठो और बैंक से पैसा निकालकर दे दो। मैने सोचा कि जो प्रधान जी गांव में किसी के बिमार पड़ने पर भी अपनी गाड़ी नहीं देते है आज हम लोगों को अपनी गाड़ी में क्यों ले जा रहे हैं। गांव के और भी मजदूर गाड़ी में बैठे थे। प्रधान हम सबको लेकर बड़ौदा ग्रामीण बैक बिल्हौर गये और फार्म भरकर हम लोगों से अंगूठा लगाकर जमा कर दिये हम लोगों ने तीन-तीन हजार रूप्ये निकालकर प्रधान राधवेन्द्र सिंह को दे दिये, उसके बाद प्रधान ने हम लोगों को चाय समोसा खिलाया और 50 रूप्ये देकर कहा कि बस से गांव चले जाओ। इसी तरह से गांव के करीब 100 मजदूरों का पैसा निकलवाकर प्रधान ने सबसे ले लिया। हम लोगो ने इस बीच कोई काम नहीे किया था इसलिए सोचा कि गलती से पैसा चढ़ गया होगा। गांव के कुछ मजदूरों ने जब अपने खाते से पैसा निकालने से मना किया तब प्रधान ने पुलिस बुलाने और पिटवाने की धमकी दी तो मजदूर डरकर पैसा निकालकर दे दिये कुछ मजदूर जब रिस्तेदार के यहां चले गये तो उसे गाड़ी से पकड़कर जबरदस्ती उससे पैसा प्रधान ने निकलवा लिया। संजय द्विवेदी ने बताया कि उनके घर में दो भाइयों के जाब कार्ड बने है और हम दोनों भाइयों ने करीब 24 हजार रूप्ये निकालकर प्रधान को दिये हैं। संजय पुत्र दयाशंकर का जाब कार्ड सं0 31340376042825093 और बैंक एकाउन्ट न0 30650100003312 से 9 मार्च को 8000 रूप्ये 18 मार्च को 2400 और 26 मार्च को 2000 रूप्ये निकालकर प्रधान राधवेन्द्र सिंह को दे दिये। इसी तरह राजेश पुत्र राम स्वरूप बैंक एकाउन्ट न0 30650100003402 से 2900 रूप्ये, राजू पुत्र राम स्वरूप से 1900 रूप्ये, राजेश पुत्र मुल्ला जाब कार्ड सं0 31340376042825098 से 2900 रूप्ये, अरविन्द पुत्र सोबैदर जाब कार्ड सं0 31340376042825001 और बैंक एकाउन्ट न0 30650100003370 से 2900 रूप्य,े अरूण पुत्र रामस्वरूप जाब कार्ड सं0 31340376042825153 और बैंक एकाउन्ट न0 30650100003360 से 2900 रूप्ये निकालकर ग्राम प्रधान को दे दिए। मजदूरों के जाब कार्ड में कुछ भी नहीं भरा गया है जाब कार्ड पूरी तरह से खाली है। मजदूरों से बातचीत के दौरान वहां पर ग्राम पंचायत के नरेगा के काम के लिए नियुक्त पंचायत मित्र अंकित कुमार शुक्ल आ गये, उन्होने बताया कि मस्टर रोल काम के दौरान नहीं भरा जाता है वो प्रधान और सचिव बाद मे भरते हैं। मजदूरों ने ये भी बताया कि उनसे 100 से 110 घन फिट मिट्टी खोदने का कार्य लिया जा रहा है। पंचायत सचिव ने बताया कि 100 धनफुट मिट्टी खोदने का कार्य हम लोग लेते है, ये बताने पर कि मानक ये नहीे है तो पंचायत सचिव ने कहा कि प्रधान जो कहते है वही यहंा मानक है। जाते-जाते उन्होने मजदूरों को धमकी दी कि जो जो लोग यहां पर बैठक में हो उन सबको काम से निकाल देंगे और कोई काम नहीं करायेंगे। जहां आज हम अपने को विकसित देश की कतार में खडे़ देखना चाहते है वही इस देश की 60 प्रतिशत आबादी आज भी इसी तरह शोषण व दमन के बीच रोटी की जद्दोजहद में लगी हुई है, और हमारे रक्तपिपासु जनप्रतिनिधि तथा प्रशासन के नुमाइंदे नरेगा जैसी योजनाओं में भी मजदूरों का रक्त चूस रहे है।

Report By, Mahesh & Shankar Singh

“Asha Pariwar”, Kanpur

“Apna Ghar”, B-135/8, Pradhane Gate, Nankari ,IIT, Kanpur-16 India


बुधवार, 2 सितंबर 2009

प्रधान ने किया ५५ लाख का घोटाला, इसे उजागर करने वाले को पहुंचा दिया मौत के करीब

कुशी नगर जिले में प्रधान ने किया ५५ लाख का घोटाला, इसे उजागर करने वाले को पहुंचा दिया मौत के करीब !
चुन्नीलाल

३० अगस्त, २००९ को बाजार से लौटते समय जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से जुड़े सामाजिक कार्यकर्त्ता श्री कन्हैया पाण्डेय पर ग्राम पंचायत गौरखोर ब्लाक फाजिलनगर, के ग्राम प्रधान गौतम लाल ने अपने साथियों के साथ मिलकर जानलेवा हमला किया | लाठी डंडों से इतना मारा कि नाक की हड्डी टूट गई और सिर फूट गया तथा पूरे शरीर पर लाठियाँ चलाई, जो अब जिला हॉस्पिटल कुशीनगर में मौत से लड़ रहे हैं | हालत गम्भीर है, बचने की उम्मीद कम |

इस घटना को अंजाम तक पहुँचाने की कोशिश में ग्राम प्रधान गौतम लाल ने ग्राम विकास का ५५ लाख रूपये का घोटाला किया | यह घोटाला तब उजागर हुआ जब जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता ने सूचना के अधिकार अधिनियम २००५ के तहत ग्राम पंचायत गौरखोर के विकास पर खर्च किये गए सरकारी धन का हिसाब-किताब माँगा | गांव के विकास के नाम पर खर्च किया गया सरकारी धन केवल कागजों तक ही पहुंचा था और कागजों पर ही गांव का विकास हो गया | गांव के विकास का पैसा ग्राम प्रधान ने केवल अपने विकास में खर्च किया था |

५५ लाख के घोटाले की जाँच ग्रामीण उच्च अधिकारियों से कराने की मांग को लेकर "एन.ए.पी.एम." के राज्य समन्वयक केशव चंद बैरागी के नेतृत्व में ग्रामीणों ने ५ दिवशीय धरना ग्राम पंचायत गौरखोर की ब्लाक फाजिलनगर पर शुरू कर दिया | यह धरना २१ अगस्त २००९ से २५ अगस्त २००९ तक ब्लाक पर चलता रहा | ५ दिनों में किसी सरकारी अधिकारी,कर्मचारी ने इन लोगों की सुध नहीं ली | जब ५ दिन के बाद भी किसी अधिकारी के कान पर जूं नहीं रेंगी तब यह धरना जिलाधिकारी कुशीनगर के आवास पर पहुँच कर भूख हड़ताल में बदल गया |

२५ अगस्त, २००९ से केशव चंद बैरागी के साथ कन्हैया पाण्डेय, पौहारी सिंह, कृष्ण, नसरुल्लाह और तमाम ग्रामीणवासियों ने जिलाधिकारी कार्यालय के सामने भूख हड़ताल शुरू कर दिया | चार दिन बाद यानि 29 अगस्त,२००९ को मौके पर पहुँचे जिलाधिकारी कुशीनगर, एस.डी.एम. व अन्य अधिकारियों ने भूख हड़ताल पर बैठे लोगों को जाँच का आश्वासन देकर भूख हड़ताल ख़त्म करवाई थी | सभी ग्रामीण इस बात से ख़ुशी थे कि हमने अपने हक़ के लिए लड़ाई लड़ी है और अब इस घोटाले की जाँच होगी |

यह क्या था ? जाँच अभी शुरू नहीं हुई कि कातिलाना हमला शुरू हो गया | ३० अगस्त,२००९ की शाम ब्लाक फाजिल नगर की बाजार से लौटते समय ग्राम प्रधान और उसके साथियों ने जाँच घोटाले की जाँच कराने की आवाज उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता कन्हैया पाण्डेय पर जान लेवा हमला कर दिया | कन्हैया पाण्डेय इस समय जिला हॉस्पिटल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं | फिर कानून ग्राम प्रधान को दोषी नहीं ठहरा रहा है उल्टे कन्हैया पाण्डेय पर ही एस.सी.एस.टी. एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करने की सोंच रहा है |
अब देखना यह है कि समाज के इन सेवकों को न्याय कौन दिलाता है ?
कौन वसूल कर्ता है ग्राम विकास के घोटाले का धन ? ग्राम प्रधान से !


लेखक - आशा परिवार एवं जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से जुड़कर शहरी झोपड़-पट्टियों में रहने वाले गरीब, बेसहारा लोगों के बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं तथा सिटिज़न न्यूज़ सर्विस के घुमंतू लेखक हैं|

गुरुवार, 20 अगस्त 2009

वे डरते हैं......कि लोग डरना न बंद कर दें....

वे डरते हैं...कि लोग डरना न बंद कर दें...
अरविन्द मूर्ति

"मऊनाथभंजन" जो अब जिला बनने के बाद "मऊ" के नाम से जाना जाता है | घनी आबादी वाला ताने बाने का शहर है | जिसके बाशिंदों में मजहबी लिहाज से इस्लाम को मानने वालों की तादात थोड़ी ज्यादा है | इसी वजह से सरकारी और फिरकापरस्ती की सोंच और जुबान में इस शहर को संवेदनशील कहा जाता है | जबकि संवेदनशीलता का वास्तविक अर्थ है जिन्दादिली, इसी जिन्दादिली का जीता जागता सबूत है २९ जुलाई,०९ की घटना, रोज मर्रा की जिंदगी में आम आदमी को, जिसे कदम-कदम पर पुलिस की भ्रष्टाचारी व दमनकारी कार्यवाईयों के आगे झुकना पड़ता है | उससे ऊब कर जब जनता उठ खड़ी हुई तो हंगामा क्यों बरपा ? २९ जुलाई,०९ की सुबह भी करघे की खटपट, घंटे-घड़ियाल, अजान की आवाजों के साथ हुई और शहर के बाशिंदें अपनी रोजमर्रा की जिंदगी के लिए रोजी-रोटी की तलाश में निकल पड़े | वक्त की सुई चलती रही और समय बढ़ने के साथ-साथ शहर का ही जिला मुख्यालय होने से जिले के हर हिस्से से लोगों के आने का सिलसिला भी बढ़ा, और दिन के सबसे व्यस्ततम समय ११.३० बजे भीड़-भाड़ वाले आज़मगढ़ तिराहे पर खड़ी भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था की शान पुलिस जो तथा कथित आजादी के ६२ वर्षों बाद भी अंग्रेजों के अट्ठारह सौ एकसठ (१,८६१) के बनाये कानून से चलयी जा रही है | जिसने अपनी कर्तब्य निष्ठां (बेईमानी) का पूरी ईमानदारी से पालन करते हुए "नो एंट्री" समय में चौदह टायरोंवाली ट्रक को शहर में जाने की इजाजत देते हुए पुलिस का एक जवान ट्रक पर चढ़ चढ़कर ट्रक ड्राईवर से पैसों की मांग करने लगा मात्र २० रुपया न देने की जिद पर अड़े ट्रक ड्राईवर ने पुलिस जवान को धक्का मारा जिससे वह नीचे गिर पड़ा, ड्राईवर ट्रक लेकर बेतहासा भाग चला | हलीमा अस्पताल के सामने एक ऑटो-रिक्शा व मारुतीकार को धक्का मारते हुए आज़मगढ़ जाने वाली सड़क से मिर्जाहादीपुरा जा पहुंचा वहां से वह शहर के बाहर आज़मगढ़ की तरफ न जाकर मिर्जाहादीपुरा चौक से शहर में घुस गया |

सवाल दर सवाल--मिर्जाहादीपुरा चौक पर २४ घंटे ड्यूटी पर तैनात रहने वाली पुलिस ने "नो एंट्री" जोन में जाने वाली इतनी बड़ी ट्रक को जो एंट्री के समय भी शायद ही अन्दर जा सकती हो कैसे जाने दिया ? अगर ट्रक अन्दर घुस गया तो पुलिस वालों ने आगे के पुलिसबूथ पर तैनात पुलिस सहकर्मियों को आगाह क्यों नहीं किया ? साथ ही अपने पुलिस के आला-अफसरों को इसकी जानकारी क्यों नहीं दी ? मिर्जाहादीपुरा से बंधे तक ३ किलोमीटर की दूरी तय करने वाले ट्रक को जो शहर को रौंदता हुआ गया बीच में न रोक पाने वाली नाकाम पुलिस यहाँ तक कि इस बीच जिला प्रशासन की नाक और पुलिस का अंतिम किला (कोतवाली) जिसको बचाने के लिए ही पुलिस ने आम लोगों पर गोली चलाई उसके सामने पर भी ट्रक गुजरी, आखिर पुलिस क्या करती रही ? यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है |

वर्निंग ट्रेन बनकर.......गुजरे ट्रक ने शहर की लाइफ लाइन मानी जाने वाले सड़क पर पैदल रिक्शा, ऑटो, साइकिल, मोटर साइकिल, ठेला, फुटपाथों को लहू लुहान कर दिया और इस दरम्यान ट्रक से कुचल कर १. वैद्य नन्हकू राम २. संदीप पाटिल ३. मसीहुत जमां ४. आयशा खातून इन चार लोगों की मौत और लगभग ३० लोग जख्मी हो चुके थे | इस संवेदनशील शहर के बाशिंदे मजहब और जाति का भेदभुला कर एक दूसरे की मदद में तल्लीन हो चुके थे | पूरा शहर मायूशी में डूब गया था पर हंगामें की शुरुआत किसने की और कहाँ हुयी यह बहुत ही संदेहास्पद बना हुआ है और अन्य घटनाओं की तरह अफवाहों का दौर चलता रहा | सच जिन्दा रहे का उदघोष करने वाले दैनिक अख़बार अमर उजाला, ३० जुलाई 09 वाराणसी संस्करण की माने तो,"बवाल तब शुरू हुआ जब ट्रक पुलिस भर्ती का फॉर्म लेने के लिए डाकघर पर लाइन लगाये अभ्यर्थियों को धक्का मारते हुए निकल गया | नाराज अभ्यर्थियों ने कोतवाली पर पथराव कर दिया | पीछे से बाजार के लोग भी वहां पहुँच गए " और आम लोगों का गुस्सा पुलिस के खिलाफ़ फ़ुट पड़ा और यह आक्रोश पूरी तरह से पुलिस की सम्पत्ति पर रहा, और शहर के अन्दर बने पुलिस बूथों को लोगों ने तोड़ डाला मुख्य डाकघर की आगजनी भी संदेहास्पद है | इसमें पुलिस की भूमिका संदिग्ध है | प्रत्यक्षदर्शी लोग पुलिस के आतंक से कुछ भी बताने को तैयार नहीं हैं | डाकघर का हमेश बंद रहने वाला गेट अवश्य तोड़ा गया है | वह भी कोतवाली से हुए फायरिंग और गोली लगने से हुयी मौतों के बाद | क्योंकि शहर के अन्दर सभी बैंक और डाकघर पूरी तरह सुरक्षित रहे हैं |

पुलिस की घिनौनी साम्प्रदयिक चाल नहीं चली-पुलिस प्रशासन ने अपनी नाकामी छुपाने के लिए लोगों के गुस्से को साम्प्रदायिक रंग में रंगने की भरपूर कोशिश की यहाँ तक कि तत्कालीन एसपी ने बयान दे डाला कि मैंने दंगा रोंका है | जबकि हिन्दू-मुस्लिम एक जुट होकर सिर्फ पुलिस के खिलाफ़ सड़क पर उतरे कहीं भी किसी ने किसी की दुकान पर एक नजर नहीं देखा न ही किसी का कुर्सी टेबल, बोर्ड छुआ | आम लोगों के वाहन भी शहर में सही सलामत रहे | यह गुस्सा हिन्दू-मुस्लिम की एकता और मजबूती की मिशाल बन गया | लोगों का एक दूसरे पर भरोसा, विश्वाश का एहसास बहुत गहरा हुआ |

पुलिस के खिलाफ़ इस तरह का आक्रोश 26 मई, २००५ को भीटी में युवाव्यापारी सहित ३ लोगों की हुई हत्या के बाद भी दिखा था | जब लोगों ने भीटी पुलिस चौकी को ध्वस्त कर दिया | पुलिस के उच्च अधिकारियों के वाहन फूंक डाला था |

कानून दिशा-निर्देशों का खुला उलंघन करते हुए पुलिस ने गोली चलाई | प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक पुलिस ने न तो आंसू गैस के गोले छोड़े न रबर की गोलियां चलाई, पानी की बौछार नहीं करने की बात तो खुद पुलिस ने केंद्र को भेजी रिपोर्ट में कहा | लेकिन २५ रबर की गोली, ३० आंसू गैस के गोले, १४ राउंड फायर रायफल से, १ गोली रिवाल्वर से चलना बताया गया है | लेकिन लोगों को न तो आंसू गैस के खाली गोले मिले न रबर की गोलियां मिलीं | मिलीं तो सिर्फ लोगों के शरीर में गोलियां या उनके निशान जो दीवालों पे, मस्जिद की दीवालों में, दुकानों के शटर में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं | कोतवाली से लेकर हट्ठी मदारी चौकी मिर्ज़हादीपुरा के दक्षिण टोला थाने तक गोलिया चली पुलिस ने सारे दिशा निर्देशों का खुला उलंघन करते हुए लोगों पर गोलियां चलाई | पुलिस की गोली से मरने वाले ४ लोगों को गोलियां क्रमशः गले में, सीने में, पेट में, और कमर से ऊपर ही लगीं जो कानूनन गलत है |

कानून का पालन करने वाले खुद कानून का उलंघन करें तो इन्हें दोहरी सजा मिलनी चाहिए | इन गोली चलाने वालों को चिन्हित कर उनके ऊपर हत्या का मुकदमा चलाना ही न्याय संगत होगा और लोकतंत्र की मजबूती का आधार बनेगा, तथा पूरे देश में होने वाले धरना, प्रदर्शन, आन्दोलन, जन अक्रोशों पर चलने वाली गोली मर्यादित होगी | पुलिस की गोली से मरने वालों की एक झलक यु तों देश भर में पुलिस की गोली का शिकार, निरपराध, गरीब मजदूर ही होता है | वही यहाँ भी हुआ |

मो. अज़मल उम्र २५ साल रिक्शा चलाकर पूरे परिवार का पेट पालने वाला एक मात्र कमाऊ सदस्य जो रिक्शा लेकर इस शहर में रहा | अनवर जमाल उम्र ३० साल, पॉवर-लूम चलाते थे, हंगामें में घर भाग रहे थे, गोली लगी | शमशाद, दिहाडी मजदूर, मजदूरी करके लौट रहे थे, गोली लगी | मो. जाहिद उम्र १८ वर्ष, पढाई करके घर लौट रहे थे, गोली लगी और इन चारों की मौत हो हुई | इसी तरह के २० लोग गोली लगने से घायल हुए इनमें कई लोगों की हालत अभी भी गम्भीर बनी हुई है | कुछ लोग तो ऐसे घायल हैं जो जिन्दा रहकर भी मरे हुए रहेंगे | यह लोग आजीवन विकलांगता के शिकार होकर रह जायेंगे | ऐसे निरपराध लोगों को देख कर राजेश जोशी की ये पक्तियां बरबस याद आती हैं-
"इस समय /सबसे बड़ा अपराध है /निहत्थे और निरपराध होना /जो अपराधी नहीं होंगे /मारे जायेंगे |"

पुलिस उत्पीड़न का सिलसिला जारी ----------२९ जुलाई,२००९ को मऊ गोली कांड के बाद से ही कानून व्यवस्था की कमजोरी को सरकार अपनी तरफ से छुपाने की भरपूर कोशिश कर रही है | पुलिस सहित पूरे प्रशासनिक अमले को बचाने में लगी है | मात्र प्रतीकात्मक तौर पर तत्कालीन एसपी व गोली चलाने का आदेश देने वाले एसडीएम का तबादला कर दिया गया और ऊपर से एडीजी कानून व्यवस्था बृजलाल ने धौंस दी कि उपद्रियों पर गैंगस्टर और रासुका लगाया जाय जिससे तमाम लोग जो पुलिस की गोलियों से घायल हुए है अपना इलाज चोरी चुपके आसपास के निजी चिकित्सालयों में अपनी तंग हाली के बाद भी जीवन बचाने के लिए करा रहे हैं | क्योंकि स्थानीय स्तर पर पुलिस ने यह हौवा खडा कर दिया कि इन्ही घायल उपद्रियों पर बाद में मुकदमा चलेगा | जिससे लोग डर गए और अपने को घायलों की सूची में दर्ज कराना छोड़ दिया | फिर भी ३२ लोगों पर नामजद और १००० अज्ञात लोगों पर तोड़ फोड़ आगजनी और सरकारी सम्पत्ति लुटने का मामला दर्ज किया गया | इसको लेकर आम लोगों में बेहद गुस्सा है | जो कभी भी फ़ुट सकता है |


इस पूरे पुलसिया आतंक के खिलाफ़ तमाम जनसंगठन पीयूसीएल, पीयूएचआर जैसे मानवाधिकार संगठन विरोध कर रहे हैं | जनकवि गोरख पाण्डेय की ये पंक्तियाँ--"वे डरते हैं / तमाम गोला बारूद से / नहीं / वे डरते हैं / तमाम पुलिस फौज से / नहीं / वे डरते हैं कि जिस दिन / निहत्थे, निरपराध, बे जुबान जानता, डरना बंद कर देगी / उस दिन हमें भागना पड़ेगा |"

अरविन्द मूर्ति
(लेखक: जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय, सूचना अधिकार अभियान से जुड़े हैं, सद्भाव और लोकतंत्र की मजबूती के लिए जमीनी संघर्षों में हिस्से दरी के साथ "सच्चीमुच्ची" मासिक पत्रिका के संपादक हैं )