RTIUP लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
RTIUP लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

सूचना के शहीद सिपाही अमित जाठवा और रामदास पाटिल को कानपूर ने दी सच्ची श्रद्धांजलि .........

RTI कार्यकर्ताओं की शहादत को श्रधांजलि
देश भर में लगातार RTI कार्यकर्ताओं की हत्या उत्पीड़न के मामलों में खासी वृद्धि हुई है। एक तरफ जहां सरकार सूचना अधिकार अधिनियम को फैलाने और विभागों में पारदर्शिता लाने की नसीहत दे रही है। वही दूसरी आम जनता को किसी भी मामलें में सूचना देकर उसका उत्पीड़न किया जा रहा है। बीते कुछ महीनों में RTI कार्यकर्ताओं की ताबड़तोड़ हुई
हत्याओं से देश भर के सामाजिक संगठनों में रोष व्याप्त हैं। गौरतलब है कि अहमदाबाद के RTI कार्यकर्ता ने गिरी के जंगलो में हो रही अवैध खनन के खिलाफ RTI का इस्तेमाल कर एक जन आंदोलन खड़ा किया। जो खनन माफियाओं को नागवार गुजरा और 20 जुलाई 2010 को इस RTI कार्यकर्ता अमित जाठवा की अहमदाबाद हाई कोर्ट के सामने गोली मारकर हत्या कर दी गई। वहीं मराठवाड़ा में काम कर रहे RTI कार्यकर्ता रामदास पाटिल जो वहां पर अवैध बालू खनन और PDF प्रणाली में हो रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ RTI का इस्तेमाल कर एक जन संघर्ष चला रहे थे, उनकी भी हाल ही में 27 अगस्त 2010 को मुम्बई में हत्या कर दी गई। दिन पर दिन सूचना मांगने पर मिलती मौत साथ ही उत्पीड़न के खिलाफ और RTI कार्यकर्ताआ की शहादत को याद करते हुए आज 6 सितम्बर 2010 को शाम 5 बजे गांधी प्रतिमा फूलबाग में श्रद्धांजलि अर्पित की गई।आज की शहादत श्रद्धांजलि सभा की शुरुआत 2 मिनट का मौन रखकर शुरू की गयी। इसके बाद अपना घर के बच्चों ने गायेगा गायेगा जमाना गायेगा गीत गाकर गोष्ठी की शुरुआत की गोष्ठी के दौरान सरकार और जन प्रतिनिधियों से ये अपील की गई कि हत्यारोपियों को कठोर से कठोर सजा दिया जाय और देशहित में जान गंवाने वाले इन शहीद RTI कार्यकर्ताओं के परिवार को उचित मुआवजा दिया जाय। साथ ही ये भी मांग की गई कि RTI कार्यकर्ताओं की हत्या और उत्पीड़न रोकने के लिए सरकार कोई गम्भीर कदम उठाये जिससे सूचना
अधिकार अधिनियम का इस्तेमाल आम आदमी बेखौफ होकर कर सके। सभा में कुलदीप सक्सेना ने कहा कि RTI कार्यकर्ताओं की हत्या सिर्फ व्यक्ति की हत्या नही बल्कि ये लोकतन्त्र की हत्या है और हम सभी इसका पुरजोर विरोध करते है। दीपक मालवीय जी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि RTI कार्यकर्ताओं की शहादत की सच्ची श्रद्धांजलि सही अर्थो में तभी होगी जब इस देश का हर व्यक्ति RTI का इस्तेमाल करेगा। विजय चावला जी ने कहा कि ये एक लोकतन्त्र पर बड़ा हमला है। हमें इन साजिशों के अन्य तथ्यों को भी समझना पड़ेगा तभी हम इन ताकतों के खिलाफ सही तरीके से
लड़ सकेंगे आर0 टी0 आई0 कार्यकर्ता नरेश ने कहा कि अमित जाठवा और रामदास पाटिल की शहादत को हम बेकार नहीं जाने देंगे। इनकी खून की एक एक बूंद भ्रष्टाचार की ताबतू मेंअंतिम कील साबित होगी।
प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक और लेखक डॉ0 गिरीराज किशोर जी द्वरा मोमबत्ती जलाकर शहीद हुए RTI कार्यकर्ताओं को सच्चें अर्थो में श्रधांजलि अर्पित की गई। मोम्बत्ती जलाने के कार्यक्रम के दौरान जगदम्बा भाई ने गांधी ka priya
भजन रघुपति राघव राजाराम गाया। महामहिम राष्ट्रपति के नाम एक ज्ञापन भी स्थानीय प्रशासन के माध्यम से भेजा गया।
आज के इस श्रधांजलि भा में मुख्य रूप से डा0 गिरीराज किशोर, कुलदीप सक्सेना, विजय चावला, विष्णु शुक्लशंकर सिंह, नीरजा, डा0 0 सिद्दकी, इस्लाम आजाद, विष्णु अग्रवाल, नरेश, दीनदयाल, आदि ने शिरकत की। आज के श्रधांजलि कार्यक्रम में सचूना का अधिकार अभियान 0प्र0, जन चेतना कला मचं , लोक सेवक मडंल, जन सचूना जाग्रति मिशन, सचूना जनहिताय जागरूकता , सोवियर, एन0 0 पी0 एम, आशा, श्रामिक भारती, चित्रगुप्त सभा और अन्य मजदूर सगंठन तथा जनसगंठनों ने प्रमुख रूप से भागीदारी की

Mahesh

RTICUP Kanpur

10/425, Harihar Nath Shastri

Bhavan, Khalasi Line, kanpur

M0. +91-9838546900



शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

संघर्ष के आगे झुका दबंग प्रधान पति

मजदूरों के संघर्ष के आगे झुका दबंग प्रधान पति
बराण्डा ग्राम पंचायत में नरेगा के तहत किये गये काम के भुगतान के लिया छेड़ा गया संघर्ष अन्ततः रंग लाया और बराण्डा के दबंग प्रधानपति अशोक कटियार ने छः महिने से रूके पैसे का नकद भुगतान किया। बराण्डा ग्राम पंचायत ब्लाक बिल्हौर जिला कानपुर नगर के करीब बराण्डा ग्राम पंचायत के करीब 40 मजदूरों को जनवरी 2009 में करीब 22 दिन नरेगा के तहत अपने खेत के किनारे नाला खुदवाने का कार्य वहां के ग्राम प्रधान श्रीमति रेनू कटियार ने करवाया, लेकिन अभी तक उनकी मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ हैं। मजदूरों ने जब भी प्रधान पति अशोक कटियार से अपनी मजदूरी की बात की उन्होंने टाल दिया । चूकिं अशोक कटियार उस क्षेत्र के एक दबंग व्यक्ति के रूप में जाने जाते है, इस लिए मजदूरों ने डर से इस बात की कहीं शिकायत नहीं की । जुलाई महीने में त्ज्प् कार्यकर्ता शंकर सिंह के सम्पर्क में ये मजदूर आये और उन्होंने नरेगा के तहत हुए काम की मजदूरी भुगतान न होने की बात बताई । बैठक के बाद सभी मजदूरों ने संगठित होकर इस अन्याय के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। इसी संघर्ष के दौरान मजदूरों को पता चला कि जो कार्य उन्होंने किया है वो नरेगा के तहत न कराके ग्राम प्रधान ने अपना व्यक्तिगत काम कराया है। इस बात को लेकर मजदूरों ने प्रमुख सचिव ग्राम्य विकास, आयुक्त ग्राम्य विकास, जिलाधिकारी कानपुर को शिकायती पत्र लिखा साथ ही कानपुर कि मिडिया ने इस बात को अपने अखबार में प्रमुखता से उठाया। कार्यवाही होने के डर से कल 20 अगस्त से ग्राम प्रधान पति अशोक कुमार कटियार ने मजदूरों के घर जाकर उनके द्वारा किये 22 दिन के काम का नकद भुगतान किया और उनसे मिन्नत की कि आगे अब कोई कार्यवाही न करे। आखिरकार संगठित संघर्ष के कारण उनकी मेहनत का पैसा आज उन्हें मिल गया। इस जीत से मजदूरों को आगे संघर्ष करने कि प्रेरणा के साथ-साथ लोकतंत्र में विश्वास मजबूत हुआ है।

Report By, Mahesh & Sahankar Singh

“Asha Pariwar”, Kanpur

“Apna Ghar”
B-135/8, Pradhane Gate, Nankari ,IIT, Kanpur-16 India

गुरुवार, 20 अगस्त 2009

वे डरते हैं......कि लोग डरना न बंद कर दें....

वे डरते हैं...कि लोग डरना न बंद कर दें...
अरविन्द मूर्ति

"मऊनाथभंजन" जो अब जिला बनने के बाद "मऊ" के नाम से जाना जाता है | घनी आबादी वाला ताने बाने का शहर है | जिसके बाशिंदों में मजहबी लिहाज से इस्लाम को मानने वालों की तादात थोड़ी ज्यादा है | इसी वजह से सरकारी और फिरकापरस्ती की सोंच और जुबान में इस शहर को संवेदनशील कहा जाता है | जबकि संवेदनशीलता का वास्तविक अर्थ है जिन्दादिली, इसी जिन्दादिली का जीता जागता सबूत है २९ जुलाई,०९ की घटना, रोज मर्रा की जिंदगी में आम आदमी को, जिसे कदम-कदम पर पुलिस की भ्रष्टाचारी व दमनकारी कार्यवाईयों के आगे झुकना पड़ता है | उससे ऊब कर जब जनता उठ खड़ी हुई तो हंगामा क्यों बरपा ? २९ जुलाई,०९ की सुबह भी करघे की खटपट, घंटे-घड़ियाल, अजान की आवाजों के साथ हुई और शहर के बाशिंदें अपनी रोजमर्रा की जिंदगी के लिए रोजी-रोटी की तलाश में निकल पड़े | वक्त की सुई चलती रही और समय बढ़ने के साथ-साथ शहर का ही जिला मुख्यालय होने से जिले के हर हिस्से से लोगों के आने का सिलसिला भी बढ़ा, और दिन के सबसे व्यस्ततम समय ११.३० बजे भीड़-भाड़ वाले आज़मगढ़ तिराहे पर खड़ी भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था की शान पुलिस जो तथा कथित आजादी के ६२ वर्षों बाद भी अंग्रेजों के अट्ठारह सौ एकसठ (१,८६१) के बनाये कानून से चलयी जा रही है | जिसने अपनी कर्तब्य निष्ठां (बेईमानी) का पूरी ईमानदारी से पालन करते हुए "नो एंट्री" समय में चौदह टायरोंवाली ट्रक को शहर में जाने की इजाजत देते हुए पुलिस का एक जवान ट्रक पर चढ़ चढ़कर ट्रक ड्राईवर से पैसों की मांग करने लगा मात्र २० रुपया न देने की जिद पर अड़े ट्रक ड्राईवर ने पुलिस जवान को धक्का मारा जिससे वह नीचे गिर पड़ा, ड्राईवर ट्रक लेकर बेतहासा भाग चला | हलीमा अस्पताल के सामने एक ऑटो-रिक्शा व मारुतीकार को धक्का मारते हुए आज़मगढ़ जाने वाली सड़क से मिर्जाहादीपुरा जा पहुंचा वहां से वह शहर के बाहर आज़मगढ़ की तरफ न जाकर मिर्जाहादीपुरा चौक से शहर में घुस गया |

सवाल दर सवाल--मिर्जाहादीपुरा चौक पर २४ घंटे ड्यूटी पर तैनात रहने वाली पुलिस ने "नो एंट्री" जोन में जाने वाली इतनी बड़ी ट्रक को जो एंट्री के समय भी शायद ही अन्दर जा सकती हो कैसे जाने दिया ? अगर ट्रक अन्दर घुस गया तो पुलिस वालों ने आगे के पुलिसबूथ पर तैनात पुलिस सहकर्मियों को आगाह क्यों नहीं किया ? साथ ही अपने पुलिस के आला-अफसरों को इसकी जानकारी क्यों नहीं दी ? मिर्जाहादीपुरा से बंधे तक ३ किलोमीटर की दूरी तय करने वाले ट्रक को जो शहर को रौंदता हुआ गया बीच में न रोक पाने वाली नाकाम पुलिस यहाँ तक कि इस बीच जिला प्रशासन की नाक और पुलिस का अंतिम किला (कोतवाली) जिसको बचाने के लिए ही पुलिस ने आम लोगों पर गोली चलाई उसके सामने पर भी ट्रक गुजरी, आखिर पुलिस क्या करती रही ? यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है |

वर्निंग ट्रेन बनकर.......गुजरे ट्रक ने शहर की लाइफ लाइन मानी जाने वाले सड़क पर पैदल रिक्शा, ऑटो, साइकिल, मोटर साइकिल, ठेला, फुटपाथों को लहू लुहान कर दिया और इस दरम्यान ट्रक से कुचल कर १. वैद्य नन्हकू राम २. संदीप पाटिल ३. मसीहुत जमां ४. आयशा खातून इन चार लोगों की मौत और लगभग ३० लोग जख्मी हो चुके थे | इस संवेदनशील शहर के बाशिंदे मजहब और जाति का भेदभुला कर एक दूसरे की मदद में तल्लीन हो चुके थे | पूरा शहर मायूशी में डूब गया था पर हंगामें की शुरुआत किसने की और कहाँ हुयी यह बहुत ही संदेहास्पद बना हुआ है और अन्य घटनाओं की तरह अफवाहों का दौर चलता रहा | सच जिन्दा रहे का उदघोष करने वाले दैनिक अख़बार अमर उजाला, ३० जुलाई 09 वाराणसी संस्करण की माने तो,"बवाल तब शुरू हुआ जब ट्रक पुलिस भर्ती का फॉर्म लेने के लिए डाकघर पर लाइन लगाये अभ्यर्थियों को धक्का मारते हुए निकल गया | नाराज अभ्यर्थियों ने कोतवाली पर पथराव कर दिया | पीछे से बाजार के लोग भी वहां पहुँच गए " और आम लोगों का गुस्सा पुलिस के खिलाफ़ फ़ुट पड़ा और यह आक्रोश पूरी तरह से पुलिस की सम्पत्ति पर रहा, और शहर के अन्दर बने पुलिस बूथों को लोगों ने तोड़ डाला मुख्य डाकघर की आगजनी भी संदेहास्पद है | इसमें पुलिस की भूमिका संदिग्ध है | प्रत्यक्षदर्शी लोग पुलिस के आतंक से कुछ भी बताने को तैयार नहीं हैं | डाकघर का हमेश बंद रहने वाला गेट अवश्य तोड़ा गया है | वह भी कोतवाली से हुए फायरिंग और गोली लगने से हुयी मौतों के बाद | क्योंकि शहर के अन्दर सभी बैंक और डाकघर पूरी तरह सुरक्षित रहे हैं |

पुलिस की घिनौनी साम्प्रदयिक चाल नहीं चली-पुलिस प्रशासन ने अपनी नाकामी छुपाने के लिए लोगों के गुस्से को साम्प्रदायिक रंग में रंगने की भरपूर कोशिश की यहाँ तक कि तत्कालीन एसपी ने बयान दे डाला कि मैंने दंगा रोंका है | जबकि हिन्दू-मुस्लिम एक जुट होकर सिर्फ पुलिस के खिलाफ़ सड़क पर उतरे कहीं भी किसी ने किसी की दुकान पर एक नजर नहीं देखा न ही किसी का कुर्सी टेबल, बोर्ड छुआ | आम लोगों के वाहन भी शहर में सही सलामत रहे | यह गुस्सा हिन्दू-मुस्लिम की एकता और मजबूती की मिशाल बन गया | लोगों का एक दूसरे पर भरोसा, विश्वाश का एहसास बहुत गहरा हुआ |

पुलिस के खिलाफ़ इस तरह का आक्रोश 26 मई, २००५ को भीटी में युवाव्यापारी सहित ३ लोगों की हुई हत्या के बाद भी दिखा था | जब लोगों ने भीटी पुलिस चौकी को ध्वस्त कर दिया | पुलिस के उच्च अधिकारियों के वाहन फूंक डाला था |

कानून दिशा-निर्देशों का खुला उलंघन करते हुए पुलिस ने गोली चलाई | प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक पुलिस ने न तो आंसू गैस के गोले छोड़े न रबर की गोलियां चलाई, पानी की बौछार नहीं करने की बात तो खुद पुलिस ने केंद्र को भेजी रिपोर्ट में कहा | लेकिन २५ रबर की गोली, ३० आंसू गैस के गोले, १४ राउंड फायर रायफल से, १ गोली रिवाल्वर से चलना बताया गया है | लेकिन लोगों को न तो आंसू गैस के खाली गोले मिले न रबर की गोलियां मिलीं | मिलीं तो सिर्फ लोगों के शरीर में गोलियां या उनके निशान जो दीवालों पे, मस्जिद की दीवालों में, दुकानों के शटर में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं | कोतवाली से लेकर हट्ठी मदारी चौकी मिर्ज़हादीपुरा के दक्षिण टोला थाने तक गोलिया चली पुलिस ने सारे दिशा निर्देशों का खुला उलंघन करते हुए लोगों पर गोलियां चलाई | पुलिस की गोली से मरने वाले ४ लोगों को गोलियां क्रमशः गले में, सीने में, पेट में, और कमर से ऊपर ही लगीं जो कानूनन गलत है |

कानून का पालन करने वाले खुद कानून का उलंघन करें तो इन्हें दोहरी सजा मिलनी चाहिए | इन गोली चलाने वालों को चिन्हित कर उनके ऊपर हत्या का मुकदमा चलाना ही न्याय संगत होगा और लोकतंत्र की मजबूती का आधार बनेगा, तथा पूरे देश में होने वाले धरना, प्रदर्शन, आन्दोलन, जन अक्रोशों पर चलने वाली गोली मर्यादित होगी | पुलिस की गोली से मरने वालों की एक झलक यु तों देश भर में पुलिस की गोली का शिकार, निरपराध, गरीब मजदूर ही होता है | वही यहाँ भी हुआ |

मो. अज़मल उम्र २५ साल रिक्शा चलाकर पूरे परिवार का पेट पालने वाला एक मात्र कमाऊ सदस्य जो रिक्शा लेकर इस शहर में रहा | अनवर जमाल उम्र ३० साल, पॉवर-लूम चलाते थे, हंगामें में घर भाग रहे थे, गोली लगी | शमशाद, दिहाडी मजदूर, मजदूरी करके लौट रहे थे, गोली लगी | मो. जाहिद उम्र १८ वर्ष, पढाई करके घर लौट रहे थे, गोली लगी और इन चारों की मौत हो हुई | इसी तरह के २० लोग गोली लगने से घायल हुए इनमें कई लोगों की हालत अभी भी गम्भीर बनी हुई है | कुछ लोग तो ऐसे घायल हैं जो जिन्दा रहकर भी मरे हुए रहेंगे | यह लोग आजीवन विकलांगता के शिकार होकर रह जायेंगे | ऐसे निरपराध लोगों को देख कर राजेश जोशी की ये पक्तियां बरबस याद आती हैं-
"इस समय /सबसे बड़ा अपराध है /निहत्थे और निरपराध होना /जो अपराधी नहीं होंगे /मारे जायेंगे |"

पुलिस उत्पीड़न का सिलसिला जारी ----------२९ जुलाई,२००९ को मऊ गोली कांड के बाद से ही कानून व्यवस्था की कमजोरी को सरकार अपनी तरफ से छुपाने की भरपूर कोशिश कर रही है | पुलिस सहित पूरे प्रशासनिक अमले को बचाने में लगी है | मात्र प्रतीकात्मक तौर पर तत्कालीन एसपी व गोली चलाने का आदेश देने वाले एसडीएम का तबादला कर दिया गया और ऊपर से एडीजी कानून व्यवस्था बृजलाल ने धौंस दी कि उपद्रियों पर गैंगस्टर और रासुका लगाया जाय जिससे तमाम लोग जो पुलिस की गोलियों से घायल हुए है अपना इलाज चोरी चुपके आसपास के निजी चिकित्सालयों में अपनी तंग हाली के बाद भी जीवन बचाने के लिए करा रहे हैं | क्योंकि स्थानीय स्तर पर पुलिस ने यह हौवा खडा कर दिया कि इन्ही घायल उपद्रियों पर बाद में मुकदमा चलेगा | जिससे लोग डर गए और अपने को घायलों की सूची में दर्ज कराना छोड़ दिया | फिर भी ३२ लोगों पर नामजद और १००० अज्ञात लोगों पर तोड़ फोड़ आगजनी और सरकारी सम्पत्ति लुटने का मामला दर्ज किया गया | इसको लेकर आम लोगों में बेहद गुस्सा है | जो कभी भी फ़ुट सकता है |


इस पूरे पुलसिया आतंक के खिलाफ़ तमाम जनसंगठन पीयूसीएल, पीयूएचआर जैसे मानवाधिकार संगठन विरोध कर रहे हैं | जनकवि गोरख पाण्डेय की ये पंक्तियाँ--"वे डरते हैं / तमाम गोला बारूद से / नहीं / वे डरते हैं / तमाम पुलिस फौज से / नहीं / वे डरते हैं कि जिस दिन / निहत्थे, निरपराध, बे जुबान जानता, डरना बंद कर देगी / उस दिन हमें भागना पड़ेगा |"

अरविन्द मूर्ति
(लेखक: जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय, सूचना अधिकार अभियान से जुड़े हैं, सद्भाव और लोकतंत्र की मजबूती के लिए जमीनी संघर्षों में हिस्से दरी के साथ "सच्चीमुच्ची" मासिक पत्रिका के संपादक हैं )

झोपड़ पट्टी में रहने वालों का भी हैं अपना अधिकार

शिक्षा, आवास मौलिक अधिकार पर झोपड़ पट्टी में रहने वालों का भी अपना अधिकार

बड़े-बड़े लोगों की अपनी बातें, अपने काम, अपना अधिकार, अपनी दादागिरी सबकुछ अपना मानते हैं लेकिन, उन्हेंनहीं मालूम होगा या वे अंजान बनने की कोशिश कर रहे हैं कि यदि ये गरीब, मजदूर लोग जो आज झुग्गी-झोपड़ी मेंबसर कर रहे हैं बिना किसी लालच और बिना किसी दूसरे को नुकसान पहुंचाए बस चिंता है तो दो वक्त के पेट्रोलभोजन) की जिसके बिना ये शारीरिक इंजन नहीं चल सकता है | बस सिर पर एक छत की और जीवन चलाने केलिए रोजगार की और उन अधिकारों की जिन्हें सबसे पहले इन भारत निर्माण करने वाले बजाय अमीर, धनाढ्य, नेताओं, सरकारी तंत्र, बहुमंजिले आवास वालों को उनकी गन्दगी साफ़ करने तक इन झोपड़ी वालों की अहम्भूमिका होती है | जिस दिन ये लोग अपना काम करना बंद कर देंगे उसी दिन शहर वाले (राजनेता, नौकर-शाही ) सब के सब मर जायेंगे | तो भला अब बताइए कि सबसे पहले किसके अधिकारों की बात होनी चाहिए ?

इन सब अधिकारों को लेकर ये लड़ाईयां लड़ी जा रही हैं | इनमें है- लखनऊ शहर में बसी झोपड़- पट्टी डालीगंज, इस्माईल गंज आदि | झोपड़-पट्टी डालीगंज में करीब २५० परिवार झुग्गी-झोपड़ी बनाकर किसी तरह अपनाजीवन यापन करते हैं | ये वो लोग हैं जो शिल्पकारी (पत्थर का काटने), रिक्शा चालक, सब्जी का ठेला, मजदूरीकरते हैं | ये लोग करीब पिछले 25 सालों से गोमती नदी के किनारे प्लास्टिक की शीट डाल कर अपनी जीविकाचलाते चले रहे हैं | यहाँ पर "आशा ट्रस्ट " की तरफ से इनके बच्चों के लिए एक शिक्षा केंद्र चलता था | लोगअपनी जिंदगी बिना किसी सरकारी मदद के गुजार रहे हैं | बसपा सरकार, जो दलित की सरकार मानी जाती है, कीमुखिया के जन्म दिन पर इन झोपड़-पट्टी में रहने वालों को तोहफ़ा मिला बुलडोजर...........!

बुलडोज़र ने पहला काम किया सुबह बजे, लोगों के झोपड़े तोड़ने का, लोगों के झोपड़े में रखा पका-पकाया भोजन, बर्तन, घरेलू सामान को रौंदते हुए टीन सेडों और घास फूस और प्लास्टिक के तिरपाल को फाड़ते हुए आगे बढ रहा थातो दूसरी तरफ बहन जी ५२ किलो का केक काट रहीं थीं | बुलडोज़र की दहशत में झोपड़-पट्टी की गर्भवतीमहिला(दरुन्निशा पत्नी असगर अली ) प्रशव-पीडा से तड़प रही थी | प्रशासन मूक बना देखता रहा जबकि प्रशासनके आला-अफसर वहां मौजूद थे किसी ने इस महिला को हॉस्पिटल तक ले जाने की जहमत नहीं उठाई | अंततः मेरेद्वारा इस महिला को एक ठेलिया से सरकारी हॉस्पिटल पहुँचाया गया | जहाँ पर उसने समय से पूर्व दो जुड़वाँ बच्चोंको जन्म देने में रही खून की समस्या को मैंने अपना रक्त दान करके पूरा किया | एक माह की गर्भवती महिलामंतशा पत्नी राजू) जिसने बुलडोज़र की दहशत में समय से पूर्व मृत बच्चे को जन्म दिया |

बिना किसी सरकारी आवास की वैकल्पिक व्यवस्था किये इन लोगों को खुले मैदान में छोड़ दिया गया | सरकार ही सरकारी आदमियों को इसकी कोई परवाह थी | जिसका सहारा था उसी के राज्य की राजधानी लखनऊ में इन्हेंउजाडा गया अब ये जाएँ तो कहाँ जाएँ ? ऊपर से आरोप बंगलादेशी | क्योंकि मज़हब के लिहाज़ से मुसलमान, गरीबहोना, झोपड़ -पट्टी में रहना, बंगलादेशी घुसपैठिया होनी की पहली पहचान है | सीधे बंगलादेशी घोषित करकेइनके अधिकारों से वंचित करना सरकार की सोची-समझी साजिस है |

अब ये लोग बिना किसी सरकार या सरकारी परमीसन के शहरी गरीब आवास योजना के तहत बने आवासों में, जोशहर के बड़े-बड़े या फिर ठेकेदारों के नाम कर दिए गए हैं जिसमें किसी गरीब को मकान नहीं मिला है, कब्जा करकेअपने अधिकारों (स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास, भोजन, पहचान पत्र) की लडाई लड़ रहे हैं | हम इनके अधिकारों कीलडाई में शामिल होकर इसका नेतृत्व कर रहे हैं | सरकार की जितनी योजनायें हैं उनका लाभ इन तक घसीट करलाने दिलाने की कोशिश कर रहा हूँ | अब इनके बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिले मिलने लगे हैं और राशन कार्डभी बनने लगे हैं | ये तो महज थोड़ी जीत की शुरुआत है | जबतक ये अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं हो जातेतथा इनका अधिकार नहीं मिल जाता, हमारी लड़ाई जारी रहेगी |



चुन्नीलाल
chunnilallko@gmail.com