गुरुवार, 20 अगस्त 2009

झोपड़ पट्टी में रहने वालों का भी हैं अपना अधिकार

शिक्षा, आवास मौलिक अधिकार पर झोपड़ पट्टी में रहने वालों का भी अपना अधिकार

बड़े-बड़े लोगों की अपनी बातें, अपने काम, अपना अधिकार, अपनी दादागिरी सबकुछ अपना मानते हैं लेकिन, उन्हेंनहीं मालूम होगा या वे अंजान बनने की कोशिश कर रहे हैं कि यदि ये गरीब, मजदूर लोग जो आज झुग्गी-झोपड़ी मेंबसर कर रहे हैं बिना किसी लालच और बिना किसी दूसरे को नुकसान पहुंचाए बस चिंता है तो दो वक्त के पेट्रोलभोजन) की जिसके बिना ये शारीरिक इंजन नहीं चल सकता है | बस सिर पर एक छत की और जीवन चलाने केलिए रोजगार की और उन अधिकारों की जिन्हें सबसे पहले इन भारत निर्माण करने वाले बजाय अमीर, धनाढ्य, नेताओं, सरकारी तंत्र, बहुमंजिले आवास वालों को उनकी गन्दगी साफ़ करने तक इन झोपड़ी वालों की अहम्भूमिका होती है | जिस दिन ये लोग अपना काम करना बंद कर देंगे उसी दिन शहर वाले (राजनेता, नौकर-शाही ) सब के सब मर जायेंगे | तो भला अब बताइए कि सबसे पहले किसके अधिकारों की बात होनी चाहिए ?

इन सब अधिकारों को लेकर ये लड़ाईयां लड़ी जा रही हैं | इनमें है- लखनऊ शहर में बसी झोपड़- पट्टी डालीगंज, इस्माईल गंज आदि | झोपड़-पट्टी डालीगंज में करीब २५० परिवार झुग्गी-झोपड़ी बनाकर किसी तरह अपनाजीवन यापन करते हैं | ये वो लोग हैं जो शिल्पकारी (पत्थर का काटने), रिक्शा चालक, सब्जी का ठेला, मजदूरीकरते हैं | ये लोग करीब पिछले 25 सालों से गोमती नदी के किनारे प्लास्टिक की शीट डाल कर अपनी जीविकाचलाते चले रहे हैं | यहाँ पर "आशा ट्रस्ट " की तरफ से इनके बच्चों के लिए एक शिक्षा केंद्र चलता था | लोगअपनी जिंदगी बिना किसी सरकारी मदद के गुजार रहे हैं | बसपा सरकार, जो दलित की सरकार मानी जाती है, कीमुखिया के जन्म दिन पर इन झोपड़-पट्टी में रहने वालों को तोहफ़ा मिला बुलडोजर...........!

बुलडोज़र ने पहला काम किया सुबह बजे, लोगों के झोपड़े तोड़ने का, लोगों के झोपड़े में रखा पका-पकाया भोजन, बर्तन, घरेलू सामान को रौंदते हुए टीन सेडों और घास फूस और प्लास्टिक के तिरपाल को फाड़ते हुए आगे बढ रहा थातो दूसरी तरफ बहन जी ५२ किलो का केक काट रहीं थीं | बुलडोज़र की दहशत में झोपड़-पट्टी की गर्भवतीमहिला(दरुन्निशा पत्नी असगर अली ) प्रशव-पीडा से तड़प रही थी | प्रशासन मूक बना देखता रहा जबकि प्रशासनके आला-अफसर वहां मौजूद थे किसी ने इस महिला को हॉस्पिटल तक ले जाने की जहमत नहीं उठाई | अंततः मेरेद्वारा इस महिला को एक ठेलिया से सरकारी हॉस्पिटल पहुँचाया गया | जहाँ पर उसने समय से पूर्व दो जुड़वाँ बच्चोंको जन्म देने में रही खून की समस्या को मैंने अपना रक्त दान करके पूरा किया | एक माह की गर्भवती महिलामंतशा पत्नी राजू) जिसने बुलडोज़र की दहशत में समय से पूर्व मृत बच्चे को जन्म दिया |

बिना किसी सरकारी आवास की वैकल्पिक व्यवस्था किये इन लोगों को खुले मैदान में छोड़ दिया गया | सरकार ही सरकारी आदमियों को इसकी कोई परवाह थी | जिसका सहारा था उसी के राज्य की राजधानी लखनऊ में इन्हेंउजाडा गया अब ये जाएँ तो कहाँ जाएँ ? ऊपर से आरोप बंगलादेशी | क्योंकि मज़हब के लिहाज़ से मुसलमान, गरीबहोना, झोपड़ -पट्टी में रहना, बंगलादेशी घुसपैठिया होनी की पहली पहचान है | सीधे बंगलादेशी घोषित करकेइनके अधिकारों से वंचित करना सरकार की सोची-समझी साजिस है |

अब ये लोग बिना किसी सरकार या सरकारी परमीसन के शहरी गरीब आवास योजना के तहत बने आवासों में, जोशहर के बड़े-बड़े या फिर ठेकेदारों के नाम कर दिए गए हैं जिसमें किसी गरीब को मकान नहीं मिला है, कब्जा करकेअपने अधिकारों (स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास, भोजन, पहचान पत्र) की लडाई लड़ रहे हैं | हम इनके अधिकारों कीलडाई में शामिल होकर इसका नेतृत्व कर रहे हैं | सरकार की जितनी योजनायें हैं उनका लाभ इन तक घसीट करलाने दिलाने की कोशिश कर रहा हूँ | अब इनके बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिले मिलने लगे हैं और राशन कार्डभी बनने लगे हैं | ये तो महज थोड़ी जीत की शुरुआत है | जबतक ये अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं हो जातेतथा इनका अधिकार नहीं मिल जाता, हमारी लड़ाई जारी रहेगी |



चुन्नीलाल
chunnilallko@gmail.com

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