रविवार, 18 अप्रैल 2010

भारत-पाकिस्तान शांति कारवाँ

भारत-पाकिस्तान शांति कारवाँ - अमन के बढ़ते क़दम
शायद ऐसा दुनिया में कहीं भी नहीं होगा जैसा कि भारत एवं पाकिस्तान में है कि लोग भावनात्मक रूप से इतनेघनिष्ठता से जुड़े हु हैं. परन्तु उनपर भी दुश्मनी औरवैमनस्य का जहर उडेला जा रहा है. इतिहास का यह एक क्रूरमोड़ था जब राजनीतिक बंटवारा हुआ जिस की वजह सेखून-खराबा हुआ और असंख्य लोगों की जानें गयीं. इन हादसोंने गहरे घाव दिए हैं और दोनों देशों के चैतन्य में ये जख्म अभीभी हरे हैं.
बंटवारे के बाद भारत पाकिस्तान के अशांत इतिहास में चारयुद्ध हुए और अनगिनत मासूमों की जानें गयीं. भारत-पाकिस्तान संबंधों में कश्मीर आज भी एक नाजुक रग़ बना हुआ है और दोनों देशों को स्व: विनाश की ओरले जाने के खतरे का कारण भी बना हुआ है. दक्षिण एशिया में जो कठ्ठार्पंथी वर्ग हैं वो ये सुनिश्चित करते हैं किनफरत और वैरभाव की आग धधकती रहे और दोनों ओर जान-माल का भरी नुक्सान होता रहे.

दोनों ओर के आम लोग, जो हिंसा और वैरभाव के शिकार होते हैं, अमन, चैन और शांति चाहते हैं - उनका मत हैकि दोनों ओर मैत्री और सामान्य संबंधों का माहौल बने. दोनों देशों के जो कुलीन शासक वर्ग है वो एक दुसरे के प्रतिशंका रखता है परन्तु जब भी भारत पाकिस्तान के लोग आपस में मिलते हैं, तो ये सब दुर्भावनाएं विलिप्त हो जातीहैं और मुहब्बत, आपसी लगाव और सद्भावना उमड़ती है - बिलकुल उसी तरह जिस तरह एक परिवार के लोगबरसों बिछड़ने के बाद आपस में मिल रहे हों. ऐतिहासिक कारणों की वजह से जो भूगोलिक सरहदें हमपर थोपीगयी हैं, दोनों देशों में लोगों के एक जैसे ही रीति-रिवाज़ और परम्पराएँ हैं, हमारी भाषा, संगीत, खान-पान, औरजीवनशैली तक एक जैसी ही है - जिसके कारण नि:संदेह हो कर ये कहा जा सकता है कि दोनों ओर लोगों के मूल्यऔर चिंतन एक सा ही है. लोगों को सरहदों ने बांटा तो है, पर उनके दिल एक ही हैं.

हम लोगों का मानना है कि यदि दोनों देशों के मध्य सही अर्थों में शांति और दोस्ती कायम करनी है तो पहल लोगोंको ही करनी होगी. अनेकों ऐसे प्रयास पिछले बरसों में हुए हैं जिनमें से भारत-पाकिस्तान (दिल्ली से मुल्तान तक) पदयात्रा २००५ एक है. सूफी संतों और कवियों ने प्रेम गीत गए थे जो आज भी दोनों देशों के लोगों के लिए भीप्रासंगिक हैं. इसी आपसी लगन और बंधुत्व के तारतम्य को मद्देनज़र रखते हुए २००५ दिल्ली-से-मुल्तान तक कीपदयात्रा दिल्ली-स्थित सूफी संत हज़रत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह से आरंभ हुई और मुल्तान-स्थित संतबहाउद्दीन ज़कारिया की दरगाह पर समाप्त हुई थी. इस पदयात्रा ने दोनों देशों के शहरों, गाँव आदि से निकलते हुएप्रेम, शांति और बंधुत्व का सन्देश दिया. इसी के उपरांत अगस्त २००५ में दिल्ली में प्रथम परमाणु-रहित, वीसा-रहित दक्षिण एशिया सम्मलेन हुआ और दूसरा परमाणु-रहित, वीसा-रहित दक्षिण एशिया सम्मलेन २००७में लाहोर में संपन्न हुआ. इस सम्मलेन को वार्षिक करना के प्रयासों को अनेकों अडचनों ने खंडित किया है, जिनमेंसे सबसे बड़ी चुनौती है दोनों देशों में व्याप्त वीसा प्रणाली.

जमीनी स्तर पर अनेकों ऐसी पहलों का होना अनिवार्य है जिससे कि दोनों देशों की सरकारों की सोच बदले. जोसमस्याएँ दोनों देशों के लोग झेल रहे हैं वो सामान्य हैं - जैसे कि - गरीबी, बेरोज़गारी, वैश्वीकरण और आर्थिकउदारीकरण की नीतियों की मार, स्वास्थ्य एवं शिक्षा से जुड़े हुए संगीन मुद्दे, आदि.

दोनों देशों के बीच व्यापार और वाणिज्य के लिए रुकावटों को क्रमिक रूप से ढीला करना और अंतत: हटाना, आमलोगों का सरहद पार आने-जाने में बढ़ोतरी करना, आदि जैसे कदम नि:संदेह शांति प्रक्रिया को तेज़ी से आगेबढ़ाएंगे. आर्थिक रूप से मजबूत भारत एवं पाकिस्तान ही संपूर्ण दक्षिण एशिया के लिये शांति और समृद्धि का युगला सकता है. लेन-देन एवं आपसी सहयोग से, कट्टर राष्ट्रवाद के बजाय दोस्ती एवं शांति के माहौल से, ही दोनोंदेश विकास एवं उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होंगे.

बीते हुए दो सालों में दोनों सरकारों ने शान्ति की ओर कदम बढ़ाए हैं, परन्तु ये प्रयास शिथिल, धीमे, रुक-रुक केहुए हैं. दोनों देश की सरकारों को आम शांति-प्रिय लोगों की आवाज़ को सुनाने के लिए ही हम सब एक और पहलकरना के लिए प्रोत्साहित हुए हैं - "भारत-पाकिस्तान शांति कारवाँ - अमन के बढ़ते क़दम" - जो मुंबई से कराचीतक आयोजित किया जायेगा. इस शांति कारवाँ के जरिये, दोनों देशों के आम लोगों को अपनी शांति एवं दोस्ती कीबात रखने का अवसर मिलेगा और ऐसा माहौल बनाने में मदद मिलेगी जिसमें दोनों देशों की सरकारों को वाजिबआवाजों को पर ध्यान देने के लिए प्रेरित किया जाए.

इस शांति कारवाँ के माध्यम से, हम लोगों से निम्नलिखत बिंदुओं पर सहयोग की अपेक्षा करते हैं:

. सरहद के आर-पार लोगों के आने-जाने को आसान बनाया जाए. वर्तमान में सरहद के आर-पार आने-जाने परअनेकों प्रकार के व्यवधान हैं - जिनमें से कुछ तो हास्यास्पद हैं. हम लोग चाहेंगे कि इन व्यब्धनों को हटाया जाएक्योंकि सरहद के आर पार लोगों के बीच प्रगाढ़ लगाव है. लोगों के बीच भावनात्मक जुडाव है - जो दोनों देशों कीसरकारों के बीच व्याप्त नफरत और शंका के ठीक विपरीत है! दोनों देशों की सरकारों को लोगों की इच्छाओं एवंअरमानों को अनसुना नहीं करना चाहिए, और लोगों को बिना रोकटोक के आने-जाने और मिलने-जुलने के लिएछूट मिलनी चाहिए. असल में तो वीसा-पासपोर्ट प्रणाली को हटाना चाहिए.

. आम लोगों की भावना का आदर करते हुए भारत-पाकिस्तान को बिना-शर्त दोस्ती कायम करनी चाहिए औरसभी मुद्दों को बात-चीत से सुलझाना चाहिए जिससे कि अमन का वातावरण कायम हो सके. भारत-पाकिस्तान केमध्य सारे संगीन मुद्दों को शांति वार्ता के जरिये ही सुलझाना चाहिए. इन मुद्दों में कश्मीर का मुद्दा भी शामिल है (जोहमारी राय में जम्मू एवं कश्मीर के लोगों को शामिल करके ही हल ढूँढा जा सकता है), और आतंक-सम्बंधितगतिविधियाँ भी जिसके शिकार दोनों देश के लोग होते रहे हैं.

. भारत एवं पाकिस्तान को अपने-अपने परमाणु कारखानों को जल्दी-से-जल्दी दुष्क्रियाशील करना चाहिए. दोनोंदेशों को बारूदी सुरंगों को नष्ट करना चाहिए और फौजों को वापस बराक में भेज देना चाहिए. हमारा मानना है किदोनों देशों को अपने बहुमूल्य संसाधनों को रक्षा-बजट के नाम पर व्यर्थ गंवाना बंद करना चाहिए और इनसंसाधनों से गरीबी हटाने में व्यय करना चाहिए. जो लोग इस शांति कारवाँ का हिस्सा हैं उनका मानना है कि सच्चीसुरक्षा हथियारों के ढेर इकठ्ठे करने से नहीं आती बल्कि सच्ची सुरक्षा आपसी विश्वास और भरोसे पर स्थापितसंबंधों से ही आती है. हकीकत यह है कि परमाणु बम एवं बारूदी सुरंगों से 'दुश्मन' को छति पहुचने की बजायअपने ही लोगों को कहीं अधिक नुक्सान पहुँच रहा है, इसलिए यह कहना अनुचित नहीं होगा की ये हथियारजन-विरोधी हैं.

. दोनों देशों के बीच लुक-छुप वाला और लघु-तीव्र युद्ध समाप्त हो और दोनों देशों की गुप्तचर संस्थाएं पर रोक लगेकि सरहद के पार अशांति उत्पन्न हो.

शांति और विकास सिर्फ विश्वास और आपसी सद्भावना वाले वातावरण में ही संभव है - इस शांति कारवाँ का यहस्पष्ट सन्देश है. हम भलीभांति जानते हैं कि हमारे लक्ष्य सिर्फ इस प्रयास से नहीं हासिल हो सकते. हम यह भीमानते हैं कि दोनों देशों के लोगों द्वारा किये जा रहे अनेकों शांति प्रयासों में यह शांति कारवाँ एक है. आइये हम सबएकजुट हो कर इस शांति प्रक्रिया को निरंतर बढ़ाते रहे जिससे कि केवल भारत-पाकिस्तान के मध्य बल्किसंपूर्ण दक्षिण एशिया में भी आपसी विश्वास, सद्भावना और शांति का वातावरण बना रहे.
डॉ संदीप पाण्डेय
(समन्वयक: जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय)

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